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________________ ३३३ श्रमण-श्रमणो स्थापन करने वाले दोनों कुमार साधुओं को देखकर काम-भोगों से विरक्त. हुए । पुरोहित के उन दोनों कुमारों ने पिता के पास आकर मुनि-वृन्ति को ग्रहण करने के लिए अनुमति माँगी। यह सुनकर उनके पिता ने उन्हें समझाने की चेष्टा की कि, निष्पुत्र को लोक परलोक की प्राप्ति नहीं होती ! अतः तुम लोग वेद पढ़कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर, स्त्रियों के साथ भोग भोग कर पुत्रों को घर में स्थापन करके अरण्यवासी मुनि बनो । पिता के वचन को सुनकर उन कुमारों ने अपने पिता को अपना अभिप्राय समझाने की चेष्टा की। पर, पिता ने कहा-"यहाँ स्त्रियों के साथ बहत धन है, स्वजन तथा कामगुण भी पर्याप्त हैं। जिसके लिए लोग तप करते है, वह सब घर में ही तुम्हारे स्वाधीन है।” पर, उन कुमारों ने कहा"हम दोनों एक ही स्थान पर सम्यक्त्व से युक्त होकर वास करते हुए, युवावस्था प्राप्त होने पर दीक्षा ग्रहण करेंगे।" अपने पुत्रों की वाणी सुनकर भृगु-नामक पुरोहित ने अपनी पत्नी से कहा-'"हे वासिष्टी! पुत्र से रहित होकर घर में बसना ठीक नहीं है। मेरा भी अब भिक्षाचार्या का समय है ।" उसकी पत्नी ने उसे समझाने का प्रयास किया। अंत में संसार के समस्त काम भोगों का त्याग करके अपने पुत्रों और स्त्री-सहित घर से निकल कर भृगु पुरोहित ने साधु-व्रत स्वीकार किया। यह सुनकर उसके धनादि पदार्थों को ग्रहण करने की अभिलाषा रखने वाले राजा को उसकी पत्नी कमलावति ने समझाते हुए कहा-"वमन किए हुए पदार्थ को खाने वाला प्रशंसा का पात्र नहीं होता। परंतु , तुम ब्राह्मण द्वारा त्यागे धन को ग्रहण करना चाहते हो।' रानी के समझाने पर राजा रानी दोनों ही ने धनधान्यादि त्याग कर तीर्थकरादि द्वारा प्रतिपादन किये हुए घोर तपकर्म को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार के ६ जीव क्रम से प्रतिबोध को प्राप्त हुए और सभी धर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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