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भाग्य उदय हुआ है, जो ऐसे गुरु मिले । ( ५०१ ) सबको केवलज्ञान हो गया ।
तीर्थंकर महावीर
फिर भगवान् के समवसरण के निकट पहुँचते-पहुँचते अन्य ५०१ को केवलज्ञान हुआ और उसके बाद कौडिन्नादिक ५०१ साधुओं को केवलज्ञान हो गया ।
भगवान् के निकट पहुँचकर वे जाने लगे तो गौतम स्वामी ने उन्हें भगवान् ने पुनः गौतम स्वामी से धना मत करो ।”
ऐसा विचार करते-करते उन
इस पर गौतम स्वामी ने पूछा - "हे भगवन् ! इस भव में मैं मोक्ष प्राप्त करूँगा या नहीं ।"
१५०३ साधु केवलि - समुदाय की ओर भगवान् की वंदना करने को कहा । कहा - " हे गौतम! केवलि की विरा
प्रश्न सुनकर भगवान् बोले - " हे गौतम ! अधीर मत हो । तुम्हारा मुझ पर जो स्नेह है, उसके कारण तुम्हें केवलज्ञान नहीं हो रहा है । जब मुझ पर से तुम्हारा राग नष्ट होगा, तब तुम्हें केवल ज्ञान होगा ।" (देखिए उत्तराध्ययन नेमिचन्द्र की टीका सहित, अध्ययन १०, पत्र १५३-२१५९-१ )
१३ उद्रायण - देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ४२ । १४ उववालो - देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५३ ।
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१५ उसुयार – इपुकार' नगर में ६ जीव मृगु नाम के पुरोहित, यशा-नाम्नी उसकी भार्या, कीर्ति राजा और उसकी कमलावती - नाम्नी रानी के भय से व्याप्त हुए संसार से बाहर मोक्ष-स्थान में अपने चित्त को
।
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उत्पन्न हुए । दो कुमार, इपुकार - नामक विशाल
जन्म, जरा और मृत्यु
१ - कुरुजणवए उसुयारपुरे नयरे - उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य की टीका सहित, अध्ययन १४, पत्र ३६५ - १ |
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