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________________ ३३२ भाग्य उदय हुआ है, जो ऐसे गुरु मिले । ( ५०१ ) सबको केवलज्ञान हो गया । तीर्थंकर महावीर फिर भगवान् के समवसरण के निकट पहुँचते-पहुँचते अन्य ५०१ को केवलज्ञान हुआ और उसके बाद कौडिन्नादिक ५०१ साधुओं को केवलज्ञान हो गया । भगवान् के निकट पहुँचकर वे जाने लगे तो गौतम स्वामी ने उन्हें भगवान् ने पुनः गौतम स्वामी से धना मत करो ।” ऐसा विचार करते-करते उन इस पर गौतम स्वामी ने पूछा - "हे भगवन् ! इस भव में मैं मोक्ष प्राप्त करूँगा या नहीं ।" १५०३ साधु केवलि - समुदाय की ओर भगवान् की वंदना करने को कहा । कहा - " हे गौतम! केवलि की विरा प्रश्न सुनकर भगवान् बोले - " हे गौतम ! अधीर मत हो । तुम्हारा मुझ पर जो स्नेह है, उसके कारण तुम्हें केवलज्ञान नहीं हो रहा है । जब मुझ पर से तुम्हारा राग नष्ट होगा, तब तुम्हें केवल ज्ञान होगा ।" (देखिए उत्तराध्ययन नेमिचन्द्र की टीका सहित, अध्ययन १०, पत्र १५३-२१५९-१ ) १३ उद्रायण - देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ४२ । १४ उववालो - देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५३ । Jain Education International १५ उसुयार – इपुकार' नगर में ६ जीव मृगु नाम के पुरोहित, यशा-नाम्नी उसकी भार्या, कीर्ति राजा और उसकी कमलावती - नाम्नी रानी के भय से व्याप्त हुए संसार से बाहर मोक्ष-स्थान में अपने चित्त को । - उत्पन्न हुए । दो कुमार, इपुकार - नामक विशाल जन्म, जरा और मृत्यु १ - कुरुजणवए उसुयारपुरे नयरे - उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य की टीका सहित, अध्ययन १४, पत्र ३६५ - १ | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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