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महावीर-निर्माण-संवत्
कुमारपाल के सम्बन्ध में हेमचन्द्राचार्य ने त्रिपष्टिशलाकापुरुप
चरित्र में लिखा है :
अस्मिन्निवणितो वर्ष शत्या [ ता ] न्यभय षोडश । नव षष्टिश्च यास्यन्ति यदा तत्र पुरे तदा ॥ ४५ ॥ कुमारपाल भूपाली लुक्य कुल चन्द्रमा | भविष्यति महाबाहुः प्रचण्डाखण्डशासनः ॥ ४६ ॥ - त्रिपष्टिशलाकापुरुष चरित्र, पर्व १०, सर्ग १२, पत्र १५९-२ भगवान् के निर्वाण के १६६९ वर्ष बाद कुमारपाल
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अर्थात् राजा होगा ।
हम पहले कह आये हैं, वीर निर्वाण के ४७० वर्ष बाद विक्रम संवत् प्रारम्भ हुआ । अतः १६६९ में से ४७० घटाने पर ११९९ विक्रम संवत् निकलता है | इसी विक्रम संवत् में कुमारपाल गद्दी पर बैठा । इस दृष्टि से भी महावीर- निर्वाण ५२७ ई० पू० में ही सिद्ध होता है । और, ६० वर्षों का अंतर बताने वालों का मत हेमचन्द्राचार्य को ही उक्ति से खंडित हो जाता है ।
पुणे वाससहस्से सयम्मि वरिसाण नवनवइ अहिए होही कुमर नरिन्दो तुह विकमराय ! सारिच्छो - प्रबंधचिंतामणि, कुमारपालादि प्रबंध, पृष्ठ ७८ संवन्नवनव-शंकरे मार्गशीर्ष के तिथौ चतुर्थ्यां श्यामायां वारे पुण्यान्विते खौ
अथ
१ सं० ११६६ वर्षे कार्तिक मुद्री ३ निरुद्धं दिन ३ पादुका राज्यं । तत्रैव वर्षे मार्ग मुदी ४ उपविष्ट भीमदेव सुत-खेमराजसुत, देवराज सुत त्रिभुवनपाल सुतश्री कुमारपालस्य सं० १२२६ पौष सुदी १२ निरुद्धं राज्यं ....
- विचारश्रेणी ( जै० सा० सं० ) पृष्ठ 8 ऐसा ही उल्लेख स्थविरावलि (मेरुतुंग-रचित ) ( जैन० सा० सं० व २ अंक २, ४१४१ ) में भी है ।
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