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तीर्थकर महावीर रम्भात् परतः पश्चात् श्री वीर निर्वतिरत्र भणिता। को भावःश्री वीर निर्वाणदिनादनु ४७० वर्षर्विक्रमादित्यस्य राज्यारम्भ दिन मिति
-विचारश्रेणी ( पृष्ठ ३,४ ) (३) पुनर्मन्निर्वाणात् सपत्यधिक चतुः शत वर्षे (४७०) उज्जयिन्यां श्री विक्रमादित्योराजा भविष्यति...स्वनाम्ना च संवत्सर प्रवृत्तिं करिष्यसि --श्री सौभाग्यपंचम्यादि पर्वकथासंग्रह, दीपमालिका व्याख्यान,
पत्र ९६-९७ (४) महामुक्खगमणाओ पालय-नंद-चंदगुत्ताइराईसु बोलोणेसु चउसय सत्तरेहिं विक्कमाइच्चो राया होहि । तत्थ सट्ठी वरिसाणं पालगस्स रज्जं, पणपण्णं सयं नंदाणं, अट्ठोत्तर सयं मोरिय वंसाणं, तीसं पूसमित्तस्स, सट्ठी बलमित्त-भाणु मित्ताणं, चालीसं नरवाहणस्य, तेरस गद्दभिल्लस्स, चत्तारि सगरस । तो विक्कमाइच्चो......
—विविध तीर्थकल्प ( अपापावृहत्कल्प ) पृष्ट ३८,३९ (५) चउसय सत्तरि वरिसे ( ४७० ), वीराओ विक्कमो जाओ
-पंचवस्तुक विक्रम संवत् और ईसवी सन् में ५७ वर्ष का अतंर है । इस प्रकार ४७० में '५७ जोड़ने से भी महावीर-निर्वाण ईसा से ,२७ वर्ष पूर्व आता है।
कुछ लोग परिशिष्ट-पर्व में आये एक श्लोक के आधार पर, यह अनुमान लगाते हैं कि, हेमचन्द्राचार्य महावीर-निर्वाण-संवत ६० वर्ष बाद मानते हैं । पर, यह उनकी भूल है। उन लेखकों ने अपना मत हेमचन्द्रा चार्य की सभी उक्तियों पर बिना विचार किये निर्धारित कर रखा है ।
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