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महावीर-निर्माण-संवत् केवल शक-संवत् से ही नहीं, विक्रम संवत् से भी महावीर निर्वाण का अंतर जैन-साहित्य में वर्णित है ।
तपागच्छ—पट्टावलि में पाट आता हैजं रयणि कालगओ, अरिहा तित्थंकरो महावीरो। तं रयणि अवणिबई, अहिसित्तो पालो राया ॥ १॥ वट्टी पालयरगणो ६०, पणवण्णसयं तु होइ नंदाणं १५५, अट्ठसयं मुरियाणं १०८, तीस चित्र पूसमित्तस्स ३० ॥२॥ बलमित्त-भाणुमित्त सट्ठी ६० वरिसाणि चत्त नहवाणे ४० तह गहभिल्लरज्जं तेरस १३ वरिस सगस्स चउ (वरिसा)॥३॥
श्री विक्रमारित्यश्च प्रतिबोधितस्तद्राज्यं तु श्री वीर सप्तति चतुष्टये ४७० संजातं ।
–६० वर्ष पालक राजा, १५५ वर्ष नव नंद, १०८ वर्ष मौर्यवंशका, ३० वर्ष पुष्यभित्र, बलमित्र-भानुमित्र ६०, नहपान ४० वर्ष । गर्दभिल्ल १३ वर्ष, शक ४ वर्ष कुल मिलकर ४७० वर्ष ( उन्होंने विक्रमादित्य राजा को प्रति बोधित किया) जिसका राज्य वीर-निर्वाण के ४७० वर्ष बाद हुआ।
-धर्मसागर उपाध्याय-रचित तपागच्छ-पट्टावली ( सटीक सानुवाद पन्यास कल्याण विजय जी) पृष्ट ५०-५२
ऐसा ही उल्लेख अन्य स्थलों पर भी है। (१) विक्रमरज्जारंभा परओ सिरि वीर निव्वुई भणिया।
सुन्न मुणि वेय जुत्तो विक्कम कालउ जिण कालो।
-विक्रम काला जिजनस्य वीरस्य कालो जिन कालः शून्य (०) मुनि (७) वेद (४) युक्तः । चत्वारिशतानि सप्तत्यधिक वर्षाणि श्री महावीर विक्रमादित्ययोरन्तर मित्यर्थः। नन्वयं कालः श्री वीर-विक्रमयोः कथं गण्यते; इत्याह विक्रम राज्या
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