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________________ १८ गणराजे ( ५ ) उत्तराध्ययन, की टीका में भावविजयगणि ने लिखा ततो युतोऽष्टादशभिर्भूपैर्मुकुट धारिभिः ( ६ ) विचार - रत्नाकर में भी ऐसा ही उल्लेख है:चेटके नाऽप्यष्टादश गणराजानो मेलिताः ३१७ --पत्र १११-२ इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि, गणराजाओं की संख्या १८ ही मात्र थी । पर, कुछ आधुनिक विद्वान 1148 11 - पत्र ४-२ नव मल्लई, नवलेच्छई कासी कोसलामा श्रट्ठारसवि गणरायाणो पाठ से बड़े विचित्र-विचित्र अर्थ करते हैं । उदाहरण के लिए हम यहाँ कुछ भ्रामक अर्थों का उल्लेख कर रहे हैं ( १ )... ऐंड द' जैन बुक्स स्पीक आव नाइन लिच्छिवीज एज हैविंग फार्म्ड ए कंफेडेरेसी विथ नाइन मल्लाज ऐंड एटीन गणराजाज आव कासी - कोसल Jain Education International - द' एज आव इम्पीरीयल यूनिटी ( हिस्ट्री ऐंड कलचर आव द इंडियन पीपुल, वाल्यूम २, भारतीय विद्याभवन - नार्थ इंडिया इन द ' सिक्सथ सेंचुरी बी. सी., विमल चरण ला, पृष्ठ ७ ) — जैन ग्रंथों में वर्णन है कि ९ लिच्छिवियों ने ९ मल्लों और कासो कोसल के १८ गणराजाओं के साथ गणराज्य स्थापित कर लिया था । यहाँ ला - महोदय के हिसाब से ९ मल्ल + ९लिच्छिवि + १८ कासीकोशल के गणराजे कुल ३६ राजे हुए । ( २ ) ...... उनके वैदेशिक सम्बन्ध की देखभाल ९ लिच्छिवियों की एक समिति करती थी, जिन्होंने ९ मल्लिक और कासी - कोसल के १८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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