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तीर्थंकर महावीर
गणराजाओं से मिलकर महावीर के मामा चेटक के नेतृत्व में एक संघटन
चनाया था.
-- ' हिन्दू सभ्यता' राधाकुमुद मुकर्जी ( अनु० वासुदेवशरण अग्रवाल ) पृष्ठ २०० ।
राधाकुमुद मुखर्जी की गणना भी ३६ होती है । यह भी ला के समान ही भ्रामक है ।
( ३ ) द 'जैन कल्पसूत्र रेफर्स टु द नाइन लिच्छवीज एज फार्मूड ए लीग विथ नाइन मल्लकीज ऐंड एटीन आर्कस आव कासी - कोसल | - हेमचन्द्रराय चौधरी - लिखित 'पोलिटिकल हिस्ट्री आव ऐंशेंट इंडिया' पाँचवाँ संस्करण ) पृष्ठ १२५
रायचौधरी की गणना भी ३६ हुई । इसके प्रमाण में रायचौधरी ने हर्मन याकोबी के कल्पसूत्र का संदर्भ दिया है। पर, याकोबी ने अपने अनुवाद में इस रूप में नहीं लिखा है, जैसा कि रायचौधरी ने समझा । पाठकों की सुविधा के लिए हम याकोबी के अनुवाद का उद्धरण ही यहाँ दे रहे हैंः—एटीन कन्फेडेरेट किंग्स आव कासी ऐंड कोशल | -नाइन लिच्छवीज ऐंड नाइन मल्लकीज
-सेक्रेड बुक आव द ईस्ट, वाल्यूम २२, पृष्ठ २६ रायचौधरी ने अपनी पादटिप्पणि में इन लिच्छिवियों और मल्लों को कासी - कोसल का होने में सन्देह प्रकट किया है । विस्तार मे महावीर स्वामी के वंश का वर्णन करते हुए हम यह लिख चुके हैं कि लिच्छिवि क्षत्रिय थे और अयोध्या से वैशाली आये थे । भगवान् महावीर स्वामी का गोत्र काश्यप था, और काश्यप गोत्र ऋषभदेव भगवान् से प्रारम्भ हुआ, इसकी भी कथा हम लिख चुके हैं । जैन और हिंदू दोनों स्रोतों से यह सिद्ध है । परमत्थजोतिका का यह लिखना कि, लिच्छिवि काशी के थे वस्तुतः स्वयं भ्रामक है ।
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