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तीर्थकर महावीर तिलोयपण्णति में भी भगवान् का निर्वाण चतुर्दशी को ही बताया गया है । पर, अंतर इतना मात्र है कि, जहाँ उत्तर पुराण में एक हजार साधुओं के साथ मोक्षपद प्राप्ति की बात है, वहाँ तिलोयपण्णति में उन्हें अकेले मोक्ष जाने की बात कही गयो है । वहाँ पाठ है--
कत्तियकिण्हे चोदसि पच्चूसे सादिणामणक्खत्ते पावाए णयरीए एक्को वीरेसरो सिद्धो । -तिलोयपण्णति भाग १, महाधिकार ४, श्लोक १२०८, पृष्ठ ३०२
-भगवान् वीरेश्वर कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रत्यूपकाल में स्वाति नामक नक्षत्र के रहते पावापुरी से अकेले सिद्ध हुए।
धवल-सिद्धान्त में भी ऐसा ही लिखा है :--
पच्छा पावा णयरे कत्तियमासे य किण्ह चोद्दसिए सादीए रत्तीए सेसरयं छेत्त णिवाओ
पर, दिगम्बर स्रोतों में ही भगवान् का निर्वाण अमावस्या को होना भी मिलता है । पूज्यपाद ने निर्वाणभक्ति में लिखा है
पद्मवन दीर्घिकाकुल विविधद्र मखंडमंडित रम्ये । पावानगरोद्याने व्युत्सर्गेण स्थितः स मुनिः ॥१६॥ कार्तिक कृष्णस्यान्ते स्वाता वृक्षे निहत्य कर्मरजः । अवशेषं संप्रापद् व्यजरामरमक्षयं सौख्यम् ॥१७॥
-क्रियाकलाप, पृष्ठ २२१, यहाँ दीपावलि की भी एक बात बता दूँ। दक्षिण में दीपावलि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को होती है, पर उत्तर में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को होती है।
१८ गणराजे वैशाली के अंतर्गत १८ गणराजे थे। इसका उल्लेख जैन शास्त्रों में विभिन्न रूपों में आया है ।
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