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निर्वाण तिथि
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पालयित्वा [ बयालीसं वासाई ] द्विचत्वारिशद्वर्षाणि [ सामण्ण परियागं पाउणित्ता ] चरित्र पर्यायं पालयित्वा [ बावत्तरि वासाइ सव्वाउयं पालइत्ता ] द्विसप्तति वर्षाणि सर्वायु
'पालयित्वा
निर्वाण- तिथि
दिगम्बर-ग्रन्थों में भगवान् महावीर का निर्वाण कार्तिक कृष्ण चतुदर्शी को लिखा है:
क्रमात्पावापुरं प्राप्य मनोहर वनान्तरे ।
बहूनां सरसां मध्ये महामणि शिलातले ॥ ५०६ ॥ स्थित्वा दिनद्वयं वीत विहारो वृद्ध निर्जरः । कृष्ण कार्तिक पक्षस्य चतुद्दश्य निशात्यये ॥ ५१० ॥ स्वति योगे तृतीयेद्ध शुक्लध्यान परायणः । कृतत्रियोगसंरोधः समुच्छिन्न क्रियं श्रितः ॥ ५११ ॥ हता घाति चतुष्कः सन्नशरीरो गुणात्मकः । गत्ता मुनिसहस्रेण निर्वाणं सर्वत्राञ्छितम् ।। ५१२ ।।
- उत्तरपुराण, सर्ग ७६, पृष्ठ ५६३ -अंत में वे पावापुर नगर में पहुँचेंगे। वहाँ के मनोहर नाम के वन के भीतर अनेक सरोवरों के बीच में मणिमय शिला पर विराजमान होंगे । विहार छोड़कर निर्जरा को बढ़ाते हुए, वे दो दिन तक वहाँ विराजमान रहेंगे और फिर कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन रात्रिके अंतिम समय - स्वाति नक्षत्र में अतिशय देदीप्यमान तीसरे शुक्लध्यान में तत्पर होंगे । - तदनन्तर तीनों योगों का निरोध कर समुच्छिन्न क्रिया प्रतिपाति नामक चतुर्थ शुक्लध्यान को धारण कर चारों आधातिया कर्मों का क्षय कर देंगे और शरीरहित केवल गुणरूप होकर एक हजार मुनियों के साथ सत्र के द्वारा वाच्छनीय मोक्षपद प्राप्त करेंगे ।
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