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________________ भगवान् महावीर की सर्वायु ३११ गुरुपरिपाटया मूलमाद्यं कारणं वर्धमान नाम्ना तीर्थंकरः । तीर्थकृतो हि श्राचार्य परिपाट्या उत्पत्ति हेतवो भवंति न पुनस्तदंतर्गता । तेषां स्वयमेव तीर्थ प्रवर्तनेन कस्यापि पट्टधरत्वाभावात् । - गुरुपरम्परा के मूल कारणरूप श्री वर्धमान नाम के अंतिम तीर्थकर हैं । तीर्थकर महाराज गुरुपरम्परा के कारण रूप होते हैं; पर गुरुपरम्परा में उनकी गणना नहीं होती । अपनी ही जात से तीर्थ की प्रवर्तना करने वाले होने के कारण उनकी गणना पाट पर नहीं की जाती । भगवान् महावीर की सर्वायु जिस समय भगवान् महावीर मोक्ष को गये, उस समय उनकी उम्र क्या थी, इस सम्बन्ध में जैन सूत्रों में कितने ही स्थलों पर उल्लेख मिलते हैं । उनमें से हम कुछ यहाँ दे रहे हैं : ( १ ) ठाणांगसूत्र, ठाणा ९, उदेशा ३, सूत्र ६९३ में भावी तीर्थंकर महापद्म का चरित्र है । उसका चरित्र भी भगवान् महावीर-सा ही होगा | वहाँ पाठ आता है से जहा नामते अज्जो ! अहं तीसं वासाहं श्रगारवास मज्भे वसित्ता मुंडे भवित्ता जाव पव्वतिते दुवालस संवछराई तेरस पक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता तेरसहिं पक्खेहिं ऊणगाइ तीसं वासाइ केवलिपरियागं पाउणित्ता बावत्तरि वासाइ सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिस्सं जात सव्वदुक्खाणमंतं... -ठाणांगसूत्र सटीक, उत्तरार्द्ध पत्र ४६१ - १ गृहस्थ - पर्याय पालकर, केवलज्ञान-दर्शन - जैसे मैंने तीस वर्ष २ - तपागच्छपट्टावलि सटीक सानुवाद, पृष्ठ २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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