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________________ सुधर्मा स्वामी पाट पर ३०६ -तप-संयम आदि में लगे हुए साधु यदि प्रमाद आदि के कारण सम्यग वर्तन न करते हो, तो जो उचित उपायों से उनको स्थिर करे, दृढ़ करे, उस ( गुण रूपी ) सुंदर सामर्थ्य वाले को जिन-मत में ' स्थविर' कहते हैं | - ये सास्थविर तीन प्रकार के कहे गये हैं:व्यवहार-भाष्य की टीका में बताया गया है 'ष्टिवर्ष जातो जाति स्थबिरः' - ६० वर्ष की उम्र वाला जातिस्थविर | 'स्थान समवायधरः श्रुति स्थविरः' - स्थानांग, समवाय आदि को धारण करने वाला श्रुति- स्थविर | विंशति वर्ष पर्यायः पर्याय स्थविरस्तथा-बीस वर्ष जो पर्याय ( संयम ) पाले हो वह पर्याय स्थविर - ( व्यवहारभाष्य सटीक, उ० १०, सूत्र १५ पत्र १० - १ ) ठगांगसूत्र ( ठा० १०, उ० ३, सूत्र ७६१ पत्र ५१६- १ ) में १० प्रकार के स्थविर बताये गये हैं: दस थेरा पं० तं०- गाम थेरा १, नगर थेरा २, रठ थेरा ३, पसत्थार थेरा ४, कुल थेरा ५, गण थेरा ६, संघ थेरा ७, जाति थेरा ८, सुत्र धेरा ६, परिताय थेरा १० | ठाणांग की टीका में भी आया है । जाति- स्थविरा: षष्टि वर्ष प्रमाण जन्म पर्याय श्रुति स्थविरा: समवायाद्यङ्गधारिणः पर्याय- स्थविरा: विंशति वर्ष प्रमाण प्रव्रज्यापर्यायवन्तः सुधर्मा स्वामी पाट पर भगवान् के निर्वाण के पश्चात् उनके प्रथम पाट पर भगवान् के पाँचवें गणधर सुधर्मा स्वामी बैठे । जब भगवान् ने तीर्थस्थापना की थी, उसी समय वासक्षेप डालते हुए भगवान ने कहा था- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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