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तीर्थङ्कर महावीर
भगवान् का परिवार
जिस समय भगवान् का निर्वाण हुआ, उस समय भगवान् के संघ में १४ हजार साधु थे, जिनमें इन्द्रभूति मुख्य थे; ३६ हजार साध्विएँ थीं जिनमें आर्य चन्द्रना मुख्य थीं; १ लाख ५९ हजार श्रावक ( व्रतधारी ) थे, जिनमें शंख और शतक मुख्य थे; तथा ३ लाख १८ हजार श्राविकाएँ ( व्रतधारिणी ) थी, जिनमें सुलसा और रेवती मुख्य थीं । उनके परिवार में ३०० चौदहपूर्वी, १३०० अवधिज्ञानी, ७०० केवलज्ञानी, ७०० वैक्रियलब्धिवाले, ५०० विपुल मतिवाले तथा ४०० वादी थे । भगवान्, महावीर के ७०० शिष्यों ने तथा १४०० साध्वियों ने मोक्ष प्राप्त किया । उनके ८०० शिष्यों ने अनुत्तर-नामक विमान में स्थान प्राप्त किया ।
साधु
धर्मसंग्रह ( गुजराती - भाषान्तर सहित, भाग २, पृष्ठ ४८७ ) में साधु ५ प्रकार के बताये गये हैं । उसमें गाथा आती है
सो किंगच्छो भन्नइ, जत्थ न विज्जंति पञ्च वरपुरिसा । आयरिय उवज्झाया, पवत्ति थेरा गणावच्छा ॥ यतिदिनचर्या ॥ १०२ ॥
- आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्त्तक, स्थविर, और गणावच्छेदक ये पाँच उत्तम पुरुष जहाँ नहीं है, वह कुत्सितगच्छ कहा जाता है ।
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उसी ग्रन्थ ( पृष्ठ ४८८ ) में 'स्थविर' की परिभाषा इस प्रकार दी गयी है:
ते न व्यापारितेष्वर्थेष्वनगारांश्च सीदतः । स्थिरीकरोति सच्छक्तिः, स्थविरो भवतीह सः ॥ १४० ॥
१ - कल्पसूत्र सुत्रोधिका टीका सहित, सूत्र १३३-१४४, पत्र ३५६-३६१
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