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तीर्थकर महावीर ओढ़ाया । शकेन्द्र तथा सुरामुगे ने साश्रु उनका शरीर एक श्रेष्ठ विमानसरीखी शिविका में रखा।
इन्द्रों ने वह शिविका उठायी। उस समय बंदीजनों के समान जयजय करते हुए देवताओं ने पुष्प-वृष्टि प्रारम्भ की। गंधर्व-देव उस समय गान करने लगे। सैकड़ों देवता मृदंग और पणव आदि वाद्य बजाने लगे।
प्रभु की शिविका के आगे शोक से स्खलित देवांगनाएँ अभिनव नर्तकियों के समान नृत्य करती चलने लगी। चतुर्विध देवतागण दिव्य रेशमी वस्त्रों से, हारादि आभूषणों से और पुष्पमालाओं से शिविका का पूजन करने लगे। श्रावक-श्राविकाएं भक्ति और शोक से व्याकुल होकर रासक-गीत गाते हुए रुदन करने लगे।
शोक-संतत इन्द्र ने प्रभु के शरीर को चिता के ऊपर रखा। अग्निकुमार देवों ने उसमें अग्नि प्रज्वलित की। अग्नि को प्रदीप्त करने के लिए वायु-कुमारों ने वायु चलाया। देवताओं ने सुगंधित पदार्थो के और घी तथा मधु के सैकड़ों घड़े आग में डाले । ___ जब प्रभु का सम्पूर्ण शरीर दग्ध हो गया, तो मेघ-कुमारों ने क्षीरसागर के जल से चिता बुझा दी ।
शक्र तथा ईशान इन्द्रों ने ऊपर के दाहिने और बायें दाढ़ों के ले लिया । चमरेन्द्र और बलीन्द्र ने नीचे की दाढ़े ले ली। अन्य देवतागण अन्य दाँत और अस्थि ले गये। कल्याण के लिए मनुष्य चिता का भस्म ले गये। बाद में देवताओं ने उस स्थान पर रत्नमय स्तूप की रचना की।
नन्दिवर्द्धन को सूचना नन्दिवर्द्धन राजा को भगवान् के मोक्ष-गमन का समाचार मिला।
१ विपष्टिशलाका पुरुष चरित्र, पर्व १०, सर्ग १३, श्लोक २६६, पत्र १८२-२
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