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भगवान का निर्माण-कल्याणक
३०५ भी सुख नहीं होता, उस समय ऐसे नारकी-जीवों को भी एक क्षण के लिए सुख हुआ ।
उस समय 'चन्द्र' नामका संवत्सर, प्रीतिवर्द्धन' नाम का महीना, नन्दिवर्द्धन नाम का पक्ष, अग्निवेश नामका दिन था। उसका दूसरा नाम उपशम था । रात्रि का नाम देवानंदा था। उस समय अर्च-नामका लव, शुल्क-नामका प्राण, सिद्ध नामका स्तोक, सर्वार्थसिद्ध नाम का मुहूर्त और नाग-नामका करण था ।
जिस रात्रि में भगवान् का निर्वाण हुआ, उस रात्रि में बहुत से देवीदेवता स्वर्ग से आये । अतः उनके प्रकाश से सर्वत्र प्रकाश हो गया ।
उस समय नव मल्लकी नवलिच्छिवी कासी-कोशलग १८ गण राजाओं ने भावज्योति के अभाव में द्रव्य-ज्योति से प्रकाश किया ! उसकी स्मृति में तब से आज तक दीपोत्सव पर्व चला आ रहा है।
भगवान् का निर्वाण-कल्याणक उस समय जगत्-गुरू के शरीर को साश्रु नेत्र देवताओं ने प्रणाम किया और जैसे अनाथ हो गये हों, उस रूप में खड़े रहे । ___ शक्रेन्द्र ने धैर्य धारण करके नंदनवन आदि स्थानों से गोशीर्ष चन्दन मँगा कर चिता बनायी। क्षीरसागर के जल से प्रभु के शरीर को स्नान कराया। अपने हाथ से इन्द्र ने अंगराग लगाया। उन्हें दिव्य वस्त्र
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१-कार्तिकस्य हि प्रीतिवर्धन इति संज्ञा सूर्यप्रज्ञप्तौ।
___ -संदेहविषौपधि, पत्र १११ २--देवानंदा नाम सा रजनी सा अमावस्या रजनिरित्यप्युच्यते-वही, त्र १११
४ त्रिपष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग १३ श्लोक २४८, पत्र १८१
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