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________________ ३०४ तीर्थङ्कर महावीर जायेगा । जब आपके स्मरण मात्र से ही कुस्वान, बुरे शकुन और बुरे ग्रह श्रेष्ठ फल देने वाले हो जाते हैं, तब जहाँ आप साक्षात् विराजते हों, वहाँ का कहना ही क्या ? इसलिए हे प्रभो ! एक क्षण के लिए अपना जीवन टिका कर रखिये कि, जिससे इस दुष्ट ग्रह का उपशम हो जाये !" इन्द्र की इस प्रार्थना पर भगवान् ने कहा - "हे इन्द्र ! तुम जानते हो कि, आयु बढ़ाने की शक्ति किसी में नहीं है फिर तुम शासन- प्रेम में मुग्ध होकर ऐसी अनहोनी बात कैसे कहते हो ? आगामी दुपमा काल की प्रवृत्ति से तीर्थ को हानि पहुँचने वाली है । उसमें भावी के अनुसार यह भस्मक ग्रह भी अपना फल दिखायेगा ।" उस दिन भगवान् को केवलज्ञान हुए २९ वर्ष ६ महीना १५ दिन व्यतीत हुआ था । उस समय पर्येक आसन पर बैठे, प्रभु ने बादरकाययोग में स्थित होकर, बादर मनोयोग और वचनयोग को रोका। फिर सूक्ष्मकाय में स्थित होकर, योगविचक्षण प्रभु ने वचनकाययोग को रोका | उन्होंने वाणी और मन के सूक्ष्मयोग को रोका | इस तरह सूक्ष्म क्रिया वाला तीसरा शुक्ल ध्यान प्राप्त किया । फिर, सूक्ष्मकाययोग को रोक कर समुच्छिन्नक्रिया नामक चौथा शुक्ल ध्यान प्राप्त किया। फिर, पाँच हव अक्षरों का उच्चारण किया जा सके, इतने कालमान वाले, अव्यभिचारी ऐसे शुक्ल ध्यान के चौथे पाये द्वारा कर्म-बंध से रहित होकर यथास्वभाव ऋजुगति द्वारा ऊर्द्ध गमन कर मोक्ष में गये । जिनको लव मात्र के लिए १ मोक्ष जाने का समय कल्पसूत्र में लिखा है 'पच्चूस काल समयंमि ( सूत्र १४७ ) इसकी टोका सुबोधिका में दी है: 'चतुर्घटिका व शेषायां रात्रायां' रात्रि समाप्त होने में चार घड़ी शेष रहने पर भगवान् निर्वाण को गये । समवायांग सूत्र, समबाय ५५ की टीका में 'अंतिमरायंसि ' की टीका दी है । सर्वा: काल पर्यवसानरात्रौ रात्रेरन्ति में भागे प्रत्युषसि पत्र - ६६-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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