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तीर्थकर महावीर इसी स्थान पर, अपापापुरी में, कार्तिक मास की पिछली रात्रि में, जब चन्द्रमा स्वाति नक्षत्र में आया, छठ का तप किये हुए, भगवान् ने ५५ अध्ययन पुण्यफलविपाक सम्बन्धी और ५५ अध्ययन पापफल विपाक सम्बन्धी कहे ।' उसके बाद ३६ अध्ययन अप्रश्नव्याकरण-बिना किसी के पूछे कहे। उसके बाद अंतिम प्रधान-नाम का अध्ययन कहने लगे ।
१-समणे भगवं महावीरे अंतिमराश्यंसि पणपन्नं अज्झयणाई कल्लाणफल विवागाईपणपन्नं अज्झयणाई पावफल विवागाई वागरित्ता सिद्धे बुद्धे-समवायांगसूत्र सटीक, समवाय ५५, पत्र ६८-२
भगवान् की अंतिम देशना १६ प्रहर की थी। विविधतीर्थंकल्प के अपापापुरी बृहत्कल्प, (पृष्ठ ३४) में लिखा है-'सोलस पहराइ देसणं करेइ'। इसे नेमिचन्द्र के महावीरचरित्र में इस प्रकार लिखा है:छठ्ठय भत्तस्सन्ते दिवसं रयणिं च सम्वं पि ॥ २३०७ ॥
-पत्र ६६-२ २-कल्पसूत्र में पाठ आता है :
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे तीसं वासाइ आगारवास मझे वसित्ता, साइरेगाई दुवालस वासाई छउमत्थपरियागं पारणित्ता, देसूणाई तीसं वासाई केवलि परियागं पाउवित्ता, बयालीस वासाइ सामण्णपरियागं पाउणित्ता, बावत्तरि वासाइ सव्वाउय पालइत्ता, खीणे वेयणिज्जा-उप-नाम-गुत्ते, इमीसे
ओसप्पणीए दुसम सुसमाए समाए बहुविइक्क ताए तिर्हि वासेहिं अद्ध नवमेहि ए मासेहिं सेसेहिं पावाए मज्झिमाए हत्थिवालस्स रण्णो रज्जगसभाए एगे अबीए छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं साइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पच्चूसकाल समयंसि संपलियंकनिसरणे पणपन्नं अज्मायणइकल्लाणफल विवागाई-पणपन्नं अज्झयणाईपावफलविवागाई छत्तीसं च अपुटठवागारणाई वागरित्ता पहाणं नाम अज्झयणं विभावेमाणे विभावेमाणे कालगए, विइक्वते समुज्जाए छिन्नजाइ-जरा-मरण बंधणे सिद्धे बुद्धे, मुत्ते अंगगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे-सूत्र १४७
'छत्तीसं अपुठ्ठ वागरणाई' की टीका सुबोधिका टीका में इस प्रकार दी है:षटत्रिंशत् अपृष्ठ व्याकरणानि-अपृष्ठाण्युत्तराणि (पत्र ३६५ )
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