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तीर्थङ्कर महावीर
इस पर भगवान् ने कहा-"मेरे मोक्ष जाने के कुछ काल बाद तुम्हारे जम्बू-नामक शिष्य अंतिम केवली होंगे। उसके बाद केवल ज्ञान का उच्छेद हो जायेगा । केवलज्ञान के साथ ही मनःपर्यवज्ञान, पुलाकलब्धि, परमावधि, क्षपक श्रेणी व उपशम श्रेणी, आहारक शरीर, जिनकल्प और त्रिविध संयम (१ परिहारविशुद्धि, २ सूक्ष्मसंघराय, ३ यथाख्यातचरित्र) लक्षण भी विच्छेद कर जायेंगे।
तुम्हारे शिष्य प्रभव १४ पूर्वधारी होंगे और तुम्हारे शिष्य शव्यंभव द्वादशांगों में पारगामी होंगे। पूर्व में से उद्धार करके वे दशवैकालिक को रचना करेंगे। उनके शिष्य यशोभद्र सर्व पूर्वधारी होंगे और उनके शिष्य संभूतिविजय तथा भद्रबाहु १४ पूर्वी होंगे। संभूतिविजय के शिष्य
१ वारस वरिसेहिं गोमु, सिद्धो वीराओ वीसहिं सुहम्मा।
चउसठ्ठीए जंबू, वुच्छिन्ना तत्थ दस ठाणा ॥ ३ ॥ मण १ परमोहि २, पुलाए ३, आहार ४ खवग ५ उवसमे ५ कप्पे ७। संजमति अ ८ केवल ६ सिज्मणा य १० जंबूम्मि वुच्छिन्ना ॥ ४ ॥
-कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, पत्र ४८३
२-देखिये तीर्थंकर महावीर, भाग १, पृष्ठ १२-१३
३ (अ) तदनु श्रीशय्यंभवोऽपि साधान मुक्त निजभार्या प्रसूत मनकाख्य पुत्र“हिताय श्री दशवैकालिक कृतवान्...कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, पत्र ४८४
(आ) गोयमाणं इओ आसरण कालेणं चेव महाजसे, महासत्ते, महागुभागे सेजंभवे अणगारे, महातवासी, महागई, दुवालस अंगेसु अ धारि भावेज्जा, सेणं अपक्खवाएणं अप्पाओ सवसव्वसे सुअतिसअणं विनाय इकारसएहं अंगाणं दोद्दसण्हं पुवाणं परमसार वरिणय सुअं सुप्पभोगेणं सुअधर उज्जुनं सिद्धि मग्गं दसवे"आलिअंणाणासुयक्खं धाणि उहज्जा...
-~-महानिशीध, अध्ययन ५
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