________________
भगवान् श्रपापापुरी में
२६६
का जीव पोडिल नामक ९ वाँ तीर्थकर, रेयली का जीव शतकीर्ति नामक १०-वाँ तीर्थकर, सत्यकी का जीव सुव्रत- नामक ११ - वाँ तीर्थंकर, कृष्णवासुदेव का जीव अमम नामक १२ वाँ तीर्थकर, बलदेव का जीव अकपायनामक १३ - वाँ तीर्थकर, रोहिणी का जीव निष्पुलाक- नामक १४ - वाँ तीर्थकर, सुलसा का जीव निर्मम नामक १५ - वाँ तीर्थंकर, रेवती का जीव चित्रगुप्त-नामक १६ - वाँ तीर्थकर, गवाली का जीव समाधि- नामक १७तीर्थकर, गार्गुड का जीव संवर नामक १८ - वाँ तीर्थंकर, द्वोपायन का जीव यशोधर नामक १९-वाँ तीर्थंकर, कर्ण का जीव विजय नामक २० वाँ तीर्थकर, नारद का जीव मल्ल - नामक २१ - वाँ तीर्थकर, अंबड का जीव देव-नामक २२ वाँ तीर्थंकर, बारहवें चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त का जीव वीर्य - नामक २३ वाँ तीर्थकर, स्वाती का जीव भद्र नामक तीर्थंकर होगा ।
-वाँ
इस चौबीसी में दीर्घदन्त, गूढदन्त, शुद्धदन्त, श्रीचंद्र, श्रीभूति, श्री सोम, पद्म, दशम, विमल, विमलवाहन और अरिष्ट नाम के बारह चक्रवर्ती नंदी, नंदिमित्र, सुन्दरबाहु महाबाहु, अतिबल, महाबल, बल, द्विपृष्ट, और त्रिपृष्ट - नामक ९ वासुदेव, जयन्त, अजित, धर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, आनन्द, नंदन, पद्म और संकर्षण नाम के ९ बलराम और तिलक, लोहजंघ, वज्रजंघ, केशरी, बली, प्रह्लाद, अपराजित, भीम, और सुग्रीव-नामक ९ प्रतिवासुदेव होंगे ।"
अनन्त -
७
२४ वा
इसके बाद सुधर्मा स्वामी ने भगवान् से पूछा - "केवलज्ञान रूपी सूर्य किसके बाद उच्छेद को प्राप्त होगा ?"
१ - भावी तीर्थकरों के उल्लेखों के सम्बंध में विशेष जानकारी के लिए पृष्ठ १६० की पादटिप्पणि देखें । काललोकप्रकाश ( जैनधर्मं - प्रसारक सभा, भावनगर ) अनुवाद सहित में श्लोक २६७-३४० पृष्ठ ६२७-६३२ में भी भावी तीर्थंकरों का उल्लेख है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org