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भगवान् अपापापुरी में "छटें कमल वाले स्वप्न का फल यह है कि, जैसे स्वच्छ सरोवर में होने वाले कमल सभी सुगन्ध वाले होते हैं, वैसे ही उत्तम कुल में पैदा होने वाले सभी धर्मात्मा होते रहे हैं; परन्तु भविष्य में ऐसा नहीं होगा। वे धर्मपरायण होकर भी, कुसंगति में पड़ कर भ्रष्ट होंगे। लेकिन, जैसे गंदे पानी के गढ में भी कभी-कभी कमल उग आते हैं, वैसे ही कुकुल और कु देशों में जन्में हुए होने पर भी, कोई-कोई मनुष्य घर्मात्मा होंगे। परन्तु , वे हीन जाति के होने से अनुपादेय होंगे।
"बीज वाले स्वप्न का यह फल है कि, जैसे ऊसर भूमि में बीज डालने से फल नहीं मिलता, वैसे ही कुपात्र को धर्मोपदेश दिया जायेगा; परन्तु उसका कोई परिणाम नहीं निकलेगा । हाँ कभी-कभी ऐसा होगा कि, जैसे किसी आशय के बिना किसान धुणाक्षर-न्याय से अच्छे खेत में बुरे बीज के साथ उत्तम बीज भी डाल देता है, वैसे ही श्रावक सुपात्रदान भी कर देंगे। ___"अतिम स्वप्न का यह फल है कि, क्षमादि गुणरूपी कमलों से अंकित
और सुचरित्र रूपी जल से पूरित, एकान्त में रखे हुए कुम्भ के समान महर्षि बिरले ही होंगे। मगर, मलिन कलश के समान शिथिलाचारी लिंगी (साधु ) यत्र-तत्र दिखलायी देंगे। वे ईर्ष्यावश महर्षियों से झगड़ा करेंगे और लोग ( अज्ञानतावश ) दोनों को समान समझेंगे । गीतार्थ मुनि अंतरंग में उक्त स्थिति की प्रतीक्षा करते हुए और संयम को पालते हुए बाहर से दूसरों के समान बन कर रहेंगे।'
इस प्रकार प्रतिबोध पाकर पुण्यपाल ने दीक्षा ले ली और कालान्तर में मोक्ष को पाया ।
इसके बाद इन्द्रभूति गौतम ने भगवान् से पाँचवे आरे के सम्बन्ध में पूछा और भगवान् ने बताया कि उनके निर्वाण के बाद तीन वर्ष साढ़े आठ
१ इन स्वप्नों और उनके फलों का उल्लेख 'श्रीसौभाग्यपञ्चम्यादि पर्वकथासंग्रह' के दीपमालिकाव्याख्यान पत्र ११-१२ में भी है।
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