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तीर्थकर महावीर परचक्र का भय उत्पन्न होगा; तो भी वह दीक्षा न लेगा । यदि दीक्षा ग्रहण कर भी ले, तो फिर कुसंगवश उसे छोड़ देगा। कुसंग के कारण, व्रत लेकर उसका पालन करने वाले विरले ही होंगे।
"दूसरे स्वप्न बंदर का फल यह है कि, बहुत करके गच्छ के स्वामीभूत आचार्य कपि के समान चपल परिणामी, अल्प तत्व वाले, और व्रत में प्रमादी होंगे। धर्मस्थ को वे विपर्यास-भाव उत्पन्न करेंगे। धर्म के उद्योग में त-पर विरले ही होंगे। प्रमादी और धर्म में शिथिल दूसरों को धर्म की शिक्षा देगा । ग्राम्य जन के समान ही वह भी दूसरों की हँसी करेगा। हे राजन् ! आगामी काल में प्रवचन के न जानने वाले पुरुष होंगे।
"तीसरा स्वप्न तुमने क्षीर वृक्ष देखा। सात क्षेत्रोंमें द्रव्य बोने वाले दाता और शासनपूजक क्षीर-वृक्ष के समान श्रावक हैं। वेषमात्र धारण करने वाले, अहंकार वाले, लिंगी ( वेपमात्र धारण करने वाले), गुणवान् साधु की पूजा देखकर कंटक के समान उस श्रावक को घेर लेंगे।
“काकपक्षी के स्वप्न का यह फल है कि, जैसे काकपक्षी विहार-वापिका में नहीं जाते, वैसे ही उद्धत स्वभाव के मुनि धर्मार्थी होते हुए भी अपने गच्छों में नहीं रहेंगे । वे दूसरे गच्छों के सूरियों के साथ, जो मिथ्या भाव दिखलाने वाले होंगे, मूर्खाशय से चलेंगे। हितैषी यदि उन्हें उपदेश करेगा कि, इनके साथ रहना अनुचित है, तो वे हितैषियों का सामना करेंगे।
"सिंह स्वप्न का यह फल है कि, जिन मत जो सिंहके समान है, जातिस्मरण आदिसे रहित, धर्म के रहस्य को समझने वालों से शून्य होकर इस भरत क्षेत्र रूपी वन में विचरेगा। उसे अन्यतीर्थी तो किसी प्रकार की बाधा न पहुँचा सकेंगे; परन्तु स्वलिंगी ही-जो सिंह के शरीर में पैदा होने वाले कीड़ों के समान होंगे--इसको कष्ट देंगे और जैन-शासन की निंदा करायेंगे।
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