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________________ भगवान् अपापापुरी में २६५ ऐसी स्तुति कर हस्तिपाल बैठा, तो चरम तीर्थंकर ने इस प्रकार अपनी चरम देशना दी:___ "इस जगत में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ हैं । उनने काम का 'अर्थ' तो नाम मात्र के ही लिए 'अर्थ' रूप है, परमार्थ दृष्टि से वह अनर्थरूप है । चार पुरुषार्थों में पूर्ण रूप में 'अर्थ'-रूप तो एक मोक्ष ही है। उसका कारण धर्म है । वह धर्म संयम आदि दस प्रकार का है । वह संसार सागर से तारने वाला है। अनन्त दुखरूप संसार है । और, अनंत सुखरूप मोक्ष है । इसलिए, संसार का त्याग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए धर्म के अतिरिक्त और अन्य कोई उपाय नहीं है । पंगु मनुष्य वाहन के आश्रय से दूर जा सकता है। घनकर्मी भी धर्म में स्थित होकर मोक्ष प्राप्त करता है।" इस प्रकार धर्म-देशना देकर भगवान् ने विराम लिया । इस समय पुण्यपाल राजा ने प्रभु की वंदना करके पूछा-''हे स्वामिन् ! मैंने आज स्वप्न में, १ हाथी, २ बंदर, ३ क्षीर वाला वृक्ष, ४ काकपक्षी, ५ सिंह, ६ कमल, ७ बीज और ८ कुंभ ये आठ स्वप्न देखे । उनका फल क्या है ? भगवान् ? ऐसे स्वप्न देखने से मेरे मन में भय लगता है !" इस पर भगवान् ने हस्तिपाल को उन स्वप्नों का फल बताते हुए कहा- "हे राजन् ! प्रथम हाथी वाले स्वप्न का फल यह है कि, अब से भविष्य में क्षणिक समृद्धि के सुख में लुब्ध हुआ श्रावक विवेक बिना, जड़ता के कारण, हाथी के समान घर में पड़ा रहेगा। महादुःखी की स्थिति और १ दस वधे समणध मे पं० २०-खंती, मुत्त, अज्ज वे, मद्दवे, लाघवे सच्चे संजमे तवे चिताते बंभचेरवासे १-क्षमा, २ निर्लोभता ३ ऋजुता, ४ मृदुता, ५ लघुता-नम्रता, ६ सल्य, ७ संयम ८ तप, ६ त्याग १० ब्रह्मचर्य-ठाणांग ठा० १० उ० ३ सूत्र ७१२ पत्र४७३ २. सावा यांगसूत्र सटीक स० १०, पत्र १६-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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