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________________ २६४ तीर्थकर महावीर इस प्रकार स्तुति करके इन्द्र बैठ गया तब आपापापुरी के राजा हस्तिपाल राजा ने भगवान् की स्तुति की "हे स्वामिन् ! विशेषज्ञ के समान अपना कोमल विज्ञापन करना नहीं है। अंतःकरण की विशुद्धि के निमित्त से कुछ कठोर विज्ञापन करता हूँ। हे नाथ ! आप पक्षी, पशु, अथवा सिंहादि वाहन के ऊपर जिसका देह बैठा हो, ऐसे नहीं हैं । आपके नेत्र, मुख और गात्र विकार के द्वारा विकृत नहीं किये गये हैं। आप त्रिशूल, धनुष, और चक्रादि शस्त्रयुक्त करपल्लव वाले नहीं हैं। स्त्री के मनोहर अंग के आलिंगन देने में आप तत्पर नहीं हैं। निंदनिक आचरणों द्वारा शिष्ट लोगों के हृदय को जिसने कम्पायमान करा दिया है, ऐसे आप नहीं हैं । कोप और प्रसाद के निमित्त नर-अमर को विडंवित कर दिया हो, ऐसे आप नहीं हैं। इस जगत की उत्पत्ति, पालन अथवा नाश करने वाले आप नहीं हैं। नृत्य, हास्य, गायनादि और उपद्रव के लिए उपद्रवित स्थितिवाले आप नहीं हैं। इस प्रकार का होने के कारण, परीक्षक आप के देवपने की प्रतिष्ठा किस प्रकार करें ! कारण कि, आप तो सर्व देवों से विलक्षण हैं । हे नाथ ! जल के प्रवाह के साथ पत्र, तृण, अथवा काष्ठादि बहे, यह बात तो युक्ति वाली है, पर यदि कहें कि वह विरुद्ध बहे, तो क्या कोई इसे युक्तियुक्त मानेगा ? परन्तु, हे स्वामिन् ! मंदबुद्धि परीक्षकों की परीक्षा से अलम् ! मेरी निर्लज्जता के कारण आप मेरी समझ में आ गये । सभी संसारी जीवों से विलक्षण आपका रूप है। बुद्धिमान प्राणी ही आप की परीश्चा कर सकता है। यह सारा जगत क्रोध, लोभ और भय से आक्रान्त है, पर आप उससे विलक्षण हैं । परन्तु, हे वीतराग प्रभो ! आप कोमल बुद्धि वालों को ग्राह्य नहीं हो सकते, तीक्ष्ण बुद्धिवाले ही आप के देवपने को समझ सकते हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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