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तीर्थकर महावीर
वृहत्कल्पसूत्र उ० १ सू० ६ में उनके नाम इस प्रकार दिये हैं :
गामंसि वा १, नगरंसि वार, खेडंसि वा ३, कव्वडं सिवा ४, मडम्बंसि वा ५, पट्टणंसि वा ६, प्रागरंसि वा ७, दोणमुहंसि वा ८, निगमंसि वा ६, रायहाणिंसि वा १०, आसमंलि वा ११, संनिवेसंसि वा १२, संवाहंसि १३ वा, घोसंलि वा १४, प्रांसियंसि वा १५ पुडभेयणंसि वा १६
ओववाइयसूत्र में उनकी दो सूचियाँ आती हैं
(१) गाम १, आगर २, णयर ३, खेड ४, कब्बड ५, मडंब, ६, दोणमुह ७, पट्टण ८, आसम ६, निगम १०, संवाह ११, संनिवेत १२
(सूत्र ३२) (२) गाम १, आगर २, एयर ३, णिगम ४, रायहाणि ५, खेड ६, कब्बड ७, मडंब ८, दोणमुह ६, पट्टण १०, समम ११, संबाह १२, संन्निवेस १३
(सूत्र ३८) __उत्तराध्ययन (अ० ३०, गाथा १६-१७ ) में इतने नाम आते हैं:
गामे १, नगरे २ तह रायहाणि ३ णिगमे ४ य ागरे ५, पल्ली ६ । खेडे ७, कब्बड ८, दोणमुह ६, पट्टण १०, मडंव ११, संबाहे १२॥१६॥ आसम १३, पए विहारे १४, सन्निवेसे १५, समाय १६, घोस १७ । थलि १८, सेणाखंधारे १९, सत्थे संबाह कोटे य ॥ १७॥
भगवान् अपापापुरी में राजगृह में विहार करके भगवान् अपापापुरी पहुँचे । यहाँ देवताओं ने तीन वप्रोसे विभूषित रमणीक समवसरण की रचना की । अपने आयुष्य का अन्त जान कर प्रभु अपना अन्तिम धर्मोपदेश देने बैठे ।
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