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तीर्थङ्कर महावीर
दोन स्वर वाले, अनिष्टस्वर वाले यावत् मन को जो प्रिय न लगे ऐसे स्वर
वाले होंगे ।
कपट
जिनके वचन और जन्म अग्राह्य हों, ऐसे निर्लज्ज, छलयुक्त, युक्त, बध-बंध और पैर में आसक, मर्यादा उलंघन करने में मुख्य, अकार्य करने में नित्य तत्पर, माता-पिता के प्रति विनय-रहित, बेडौल रूप वाले, बड़े नख वाले, अधिक केशवाले, अधिक दाढ़ी मूछ और रोम वाले, काले, कठोर, श्याम वर्ण वाले, धौले केश काले, बहुत स्नायुओं से बँधे होने से दुदर्शनीय रूप वाले, बाँके टेढे अंग वाले, वृद्धावस्थायुक्त, सड़े दाँत की श्रेणी वाले, भयंकर मुख वाले, विषम नेत्रवाले, टेढ़ी नाक वाले, भयंकर रूप वाले, खसरा और खुजली से व्याप्त शरीर वाले, नखों से खुजलायी जाने के कारण विकृत शरीर वाले, दड, किडिभ ( एक जात का कोढ़ ), सिध्म ( कुष्ठ विशेष ) वाले, कठोर और फटी हुई चमड़ी वाले, विचित्र अंग वाले, ऊँट आदि के समान गति वाले, दुर्बल, खराब संघयण वाले, खराब प्रमाण वाले, खराब संस्थान वाले, खराब रूप वाले खराब स्थान वाले, खराब आसन वाले, खराब शैयावाले, खराब भोजन वाले व्यक्ति होंगे । उनके अंग अनेक व्याधियों से पीड़ित होंगे । वे बिलगति वाले, उत्साहरहित, सत्वरहित, विकृत चेष्टा वाले तथा तेजरहित होंगे ।
उनके शरीर का माप एक हाथ होगा और १६ अथवा २० वर्ष का परमायुष्य होगा । उन्हें अत्यधिक पुत्र-पौत्रादि होंगे। बहुत से कुटुम्ब गंगा-सिन्धु के तटाश्रित वैताढ्य पर्वत की बिलों में निवास करेंगे ।
गौतम स्वामी - "हे भगवन् ! वे मनुष्य किस प्रकार का आहार करेंगे ?"
भगवान् - " हे गोतम ! उस समय गंगा-सिंधु नदियों का प्रवाह रथमार्ग - जितना चौड़ा होगा । उनके जल में मछली, कच्छप आदि जीव बहुत होंगे | उन नदियों में पानी कम होगा । वे मनुष्य सूर्योदय के पश्चात् एक
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