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छठें आरे का विवरण
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पञ्चग', हरित, औषधि, प्रवाल, अंकुरादि तथा तृण-वनस्पतियाँ नाश को प्राप्त होगी ।
वैताढ्य के अतिरिक्त अन्य पर्वत, गिरि, तथा धूल के टीले आदि नाश को प्राप्त होंगे । गंगा और सिंधु के बिना पानी के झरने, खाड़ी आदि ऊँचे-नीचे स्थल समथल हो जायेंगे ।
गौतम स्वामी - "हे भगवन् ! तब भारत भूमि की क्या दशा होगी ?"
भगवान् -" उस समय भारत की भूमि अंगार-स्वरूप, मुर्मुर-स्वरूप, भस्मीभूत और तपी कड़ाही के समान, अग्नि के समान ताप वाली, बहुत धूल वाली, बहुत कीचड़ वाली, बहुत से बाल वाली, बहुत कार्द वाली होगी । उस पर लोगों का चलना कठिन होगा । गौतम स्वामी- 'उस समय मनुष्य किस के होंगे ?
( १४ २८८ की पादटिप्पणि का शेषांश )
४- गुल्मा - नवमालिका प्रभृतयः
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विशेष विवरण के लिए देखिए - तीर्थङ्कर महावीर, भाग १, ६४ ७
५- लता -- अशोकलतादयः
६ - वल्ल्यो – वालुङ्की प्रभृतयः ७ - तृण -- वीरणादीनि
भगवान्- - " हे गौतम ? खराब रूप वाले, खराब वर्णं काले, दुर्गंध वाले, दुष्ट रस वाले, खराब स्पर्शवाले, अनिष्ट, अमनोज, हीन स्वर वाले
१ - पर्वगा - इक्षु प्रभृतयः २- हरितानि - दूर्वादीनि
- औषधयः -- शात्यादयः
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४ - प्रवाला : - पल्लवांकुरा
५ --तरणवरणस्स इकाइए -त्ति वादर वनस्पतीनीत्यर्थः
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