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( रह )
४. समवायांग ५. भगवती
६. ज्ञाता
७. उपासकदशा
८. अंतकृत
९. अणुत्तरोपपातिक
४६ लाख ८ हजार
९२ लाख १६ हजार
१०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाक
१ करोड़ ८४ लाख ३२ हजार 'पद' की टीका करते हुए समवायांगसूत्र की टीका में अभयदेवसूरि ने ( पत्र १०१ - १ ) लिखा है -
१ लाख ४४ हजार
२ लाख ८८ हजार
५ लाख ७६ हजार
५२ हजार
२३ लाख ४ हजार
पदाग्रेण प्रज्ञप्तः इह यत्रार्थोपलब्धिस्तत्पदं
और, नंदी के वृत्तिकार मलयगिरि ने नंदी की टीका ( पत्र २११-२ ) में पद की टीका निम्नलिखित रूप में की है-
यत्रार्थोपलब्धिस्तत् पदम्
ऐसा ही हरिभद्रसूरि ने भी अपनी टीका में लिखा है ( पत्र ९८-२ )
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आगम साहित्य का वर्तमान रूप
आगमों के सम्बन्ध में आवश्यकता - नियुक्ति ( आवश्यक नियुक्ति दीपिका, भाग १, पत्र ३५ - २ ) में गाथा आती है:गणहरा निउणं । पवते इ ॥ ६२॥ किया और उनके
अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथंति सासणस्स हिडाए, तो सुत्तं — अर्हत् भगवान् ने अर्थ का प्ररूपण गणधरों ने उसे सूत्ररूप में निबद्ध किया ।
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