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( २८ )
१० प्रकीर्णक
१ चउसरण, २ चंदाविज्जग, ३
आउरपच्चक्खाण, ४ महपुव्वपच्चक्खाण ( महाप्रत्याख्यान ), ५ भक्तपरिज्ञा, ६ तंदुलवियालियं, ७ गणिविज्जा ८ मरणसमाहि ९ देवेन्द्रस्तव १० संस्तारक ( कुछ ग्रंथों में मरणसमाहि के स्थान पर वीरस्तव का नाम मिलता है )
६ छेद
१ निशीथ, २ वृहत्कल्प, ३ व्यवहार, ४ जीतकल्प, ५ दशाश्रुतस्कंध, ६ महानिशीथ, ( पंचकल्प उपलब्ध नहीं है )
४ मूल
१ उत्तराध्ययन, २ आवश्यक, ३ दशवैकालिक, ४ पिंडनिर्युक्ति ( ओघनियुक्ति और पाक्षिकसूत्र की भी गणना कुछ लोग 'मूल' में करते हैं । )
२ चूलिका
१ नंदी, २ अनुयोगद्वार
१२४-१ और नंदीसूत्र सटीक सूत्र २४६ - २ में विभिन्न अंग ग्रंथों की गयी है :
समवायांगसूत्र सटीक समवाय १३६ - १४८ पत्र ९९-२– ४५-५७ पत्र २०९-१पद संख्या इस प्रकार दी
१. आचारांग
२. सूत्रकृतांग
३. स्थानांग
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१८ हजार
३६ हजार
७२ हजार
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