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एकान्त दुःखवेदना-सम्बन्धी स्पष्टीकरण २८५ भगवान्- "हे गौतम ! महर्धिक यावत् महानुभाव वाला देव एक बड़ा विलेपन वाले गंधवाले, द्रव्य का डब्बा लेकर खोले । उसे खोलने पर 'यह गया' कहकर सम्पूर्ण जम्बूद्वीप के ऊपर पल मात्र में २१ बार घूमकर फिर वापस आये । हे गौतम ! तो वे सुगंधी-पुद्गल सम्पूर्ण जम्बूद्वीप का स्पर्श करेंगे या नहीं ?
गौतम स्वामी-"हाँ । स्पर्श वाला होगा।"
भगवान्-“हे गौतम ! कोई उस गंध पुद्गल को बेर की ठलिया के रूप में दिखाने में समर्थ है ?"
गौतम स्वामी-"नहीं भगवन् ! कोई समर्थ नहीं है।"
भगवान् —"इसी प्रकार कोई सुखादि को दिखा सकने में समर्थ नहीं है।"
एकान्त दु:खवेदना-सम्बन्धी स्पष्टीकरण गौतम स्वामी—"हे भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं कि सर्व प्राण, भूत, जीव अथवा सत्व एकान्त दुःख रूप वेदना भोगते हैं। हे भगवन् ! यह किस प्रकार ?”
भगयान्-“हे गौतम ! अन्य तीर्थकों का ऐसा कहना मिथ्या है। मैं इस प्रकार कहता हूँ और प्ररूपता हूँ कि, कितने ही प्राण, भूत, जीव अथवा सत्त्व एकान्त दुःख रूप वेदना का भोग करते हैं, और कदाचित् सुख का भोग करते हैं।
और कितने ही प्राण, भूत, जीव अथवा सत्त्व सुख और दुःख को अनियमितता से भोगते हैं।
१-भगवतीसूत्र शतक ६ उद्देशा १० सूत्र २५४ पत्र ५१८-५१६
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