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________________ २८४ तीर्थकर महावीर कहते हैं कि जैसे कोई युवा किसी युवती का हाथ अपने हाथ में ग्रहण करके खड़ा हो अथवा आरों से भिड़ी हुई जिस प्रकार चक्र-नाभि हो वैसे यह मनुष्य-लोक ४००-५०० योजन तक मनुष्यों से भरा हुआ है। भगवान् ! अन्यतीर्थिकों का कथन क्या सत्य है ?" __ भगवान् - "गौतम ! अन्यतीथिकों की मान्यता ठीक नहीं है। ४००-५०० योजन पर्यन्त नरक लोक-नारक जीवों से भरा है।" गौतम स्वामी-"हे:भगवन् ! नैरयिक एक रूप विकुर्वता है या बहुरूप विकुर्वन में समर्थ है ?" भगवान्- "इस सम्बन्ध में जैसा जीवाभिगम' सूत्र में कहा है, उस रूप में जान लेना चाहिए। सुख-दुःख परिणाम गौतम स्वामी-“हे भगवान् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं कि, इस राजगृह-नगर में जितने जीव हैं, उन सबके सुखों और दुःखों को इकट्ठा करके, बेर की गुठली, वाल कलम (चावल) उड़द, मूंग, जॅ अथवा लीख जितने परिणाम में भी कोई बताने में समर्थ नहीं है। ___ भगवान्--"गौतम ! अन्य तीर्थकों का उक्त कथन ठीक नहीं है । मैं तो कहता हूँ सम्पूर्ण लोक में सब जीवों का सुख-दुःख कोई दिखला सकने में समर्थ नहीं है ?" गौतम-"ऐसा किस कारण ?" १-जीवाभिगम सूत्र सटीक सूत्र ८६ पत्र ११६-२, ११७-१ २-भगवतीसूत्र सटीक श० ५, उ० ६, सूत्र २०८ पत्र ४१६ ३-यहाँ मूलपाठ है-'कलमायवि'- कलम चावल हैं । भगवती के अपने अनुवाद में बेचरदास ने [ भाग २, प ष्ठ ३४३ ] कलाय के चोखा लिखा है। भगवान् महावीर में कल्याणविजय ने भी कलाय लिखा है। कलम चावल है पर कलाय गोलचना हैं। इस पर अन्नों वाले विवरण में हम विचार कर चुके हैं। Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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