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तीर्थंकर महावीर
गरम पानी का हृद
उसी समय गौतम इन्द्रभूति ने भगवान् से पूछा - "हे भगवन् ! अन्यतीर्थिक कहते हैं कि राजगृह नगर से बाहर वैभार पर्वत के नीचे एक पानी का विशाल हृद है । वह अनेक योजन लम्बा तथा चौड़ा है । उस हृद का सम्मुख भाग अनेक प्रकार के वृक्षों से सुशोभित है । उस हद में अनेक उदार मैत्र सस्वेद करते हैं, संमूर्च्छित होते हैं और बरसते हैं । इसके अतिरिक्त उसनें जो अधिक जलसमूह होता है, वही उष्ण जलस्रोतों के रूप में निरन्तर बहता रहता है । क्या अन्यतीर्थिकों का कहना सत्य है ? भगवान् - " गौतम ! अन्यतीर्थिकों का कहना सत्य नहीं है । वैभारगिरि के निकट 'महातपोप तीर प्रभव' नामक प्रस्रवण ( झरना ) है । उसकी लम्बाई-चौड़ाई ५०० धनुष है । उसके आगे का भाग अनेक प्रकार के वृक्षों से सुशोभित है । उस झरने में अनेक उष्णयोनिवाले जीव और पुद्गल पानी -रूप में उत्पन्न होते हैं, नाश को प्राप्त होते हैं, च्यवते. हैं और उपचन प्राप्त करते हैं । उसके उपरान्त उस झरने में से सदा गरम पानी का झरना गिरा करता है । हे गौतम ! यह महातपोपतीरप्रभव-नामक झरना है ।
गौतम स्वामी ने यह सुनकर कहा - "भगवन् ! वह इस प्रकार है ।" और उनकी वन्दना की ।
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१ — भगवतीसूत्र सटीक शतक २, उद्देशा ५, सूत्र ११२ पत्र २५० । वैभारगिरि के निकट गरम पानी का उल्लेख ह्वायानच्वांग ने अपनी यात्रा में भी किया है ( देखिए टामस वार्टस-लिखित 'आन युवान् च्यांग्स ट्रैवेल्स इन इंडिया, भाग २, पृष्ठ १४७-१४८ ) बौद्ध ग्रंथों में तपोदाराम का उल्लेख आता है । बुद्धघोष ने लिखा है कि यह शब्द तपोद ( गरम पानी ) से बना है, जिसके तट पर वह आराम था (राजगृह इन ऍशेंट लिटरेचर, ला- लिखित, पृष्ठ ५) डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स भाग १ पृष्ठ ६६२-६६३ पर भी इनका वर्णन है । ये गरम पानी के झरने अब तक हैं (देखिए गदाधर प्रसाद अम्बष्ट - लिखित 'विहार दर्पण, पृष्ठ २३६ )
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