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________________ भाषा सम्बन्धी स्पष्टीकरण २७७ 1 है । मैं ऐसा कहता हूँ कि जीव एक समय में एक ही क्रिया करता है ऐर्यापथिकी अथवा सांपरायिकी क्रिया । फिर गौतम स्वामी ने पूछा - "हे भगवन् ! अन्यतीर्थिक कहते हैं कि कोई निर्गथ मरने के बाद देव होता है । वह देव अन्य देवों के साथ कि अन्य देवों की देवियों के साथ परिचारण ( विषय सेवन ) नहीं करता है | वह अपनी देवियों को वश में करके उनके साथ भी परिचारण नहीं करता। पर, वह देव अपना ही दो रूप धारण करता है—उसमें एक रूप देवता का और दूसरा रूप देवी का होता है । इस प्रकार वह ( कृत्रिम ) देवी के साथ परिचारण करता है । इस प्रकार एक जीव एक ही काल में दो वेदों का अनुभव करता है । वह इस प्रकार है - पुरुष वेद' और स्त्रीवेद । हे भगवन् यह कैसे ?" इस पर भगवान् ने कहा- -"अन्यतीर्थिकों का इस प्रकार कहना मिथ्या है । हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ, भाषता हूँ, जनाता हूँ और प्ररूपता हूँ कि कोई निर्गन्थ मरने के बाद एक देवलोक में उत्पन्न होता है । वह देवलोक बड़ी ऋद्धिवाला यावत् बड़े प्रभाववाला होता है । ऐसे देवलोक में जाकर वह निर्गथ बड़ी ऋद्धिवाला, दशों दिशाओं में शोभा पाने वाला होता है । वह देव वहाँ देवों के साथ तथा अन्य देवों की देवियों के साथ ( उनको वश में करके ) परिचारण करता है । अपनी देवी को वश में करके उसके साथ परिचारण करता है । अपना ही दो रूप बनाकर परिचारण नहीं करता ( कारण कि ) एक जीव एक समय में एक ही वेद का अनुभव करता है - स्त्रीवेद का या पुरुषवेद का । जिस समय वह स्त्रीवेद का अनुभव करता है, उस समय पुरुषवेद १ भगवतीसूत्र शतक १ उद्देश १० सूत्र ८१-८२ पत्र १८१ - १८६ २ कवि णं भंते । वेए प० । गोयमाः तिविहे वेए प० त० इत्थी वेए पुरिस्सवेए नपुंसवेए... - समवायांग स० १५३ पत्र १३१–१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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