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________________ २७६ तीर्थङ्कर महावीर जायेगा । इसी प्रकार चार परमाणु-पुद्गलों के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए । "पाँच परमाणु- पुद्गल परस्पर चिपट कर एक स्कन्ध रूप बन जाता है । पर वह स्कंध अशाश्वत है और सदा भली प्रकार उपचय प्रातः करता है । भाषा सम्बन्धी स्पष्टीकरण " पूर्व की भाषा अभाषा है । बोलती भाषा ही भाषा है और बोली जाने के पश्चात् ' भाषा अभाषा है । बोलते पुरुष की भाषा ही भाषा है । अनबोलते की भाषा भाषा नहीं है । 1 " पूर्व की क्रिया दुःख हेतु नहीं है । उसे भी भाषा के समान जान लेना चाहिए । " कृत्य दुःख है, स्पृश्य दुःख है, क्रियमाणकृत्य दुःख है, उसे करके प्राण, भूत, जीव और सत्व वेदना का वेद है । ऐसा कहा जाता है । जीव एक ही क्रिया करता है । फिर, गौतम स्वामी ने पूछा - "हे भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं कि, एक जीव एक समय में दो क्रियाएं करता है । वह ऐर्यापथिकी और सांपरायिकी दोनों करता है । जिस समय वह ऐर्यापथिकी करता है उसी समय सांपरायिकी भी करता है । जिस समय सांपरा यिकी क्रिया करता है उसी समय वह ऐर्यापथिकी भी करता है । हे भगवान् यह किस प्रकार है ?" भगवान् – “हे गौतम ! अन्यतीर्थिकों का इस प्रकार कहना मिथ्याः १ भाष्यते प्रोच्यते इति भाषा वचने 'भाष' व्यक्ताव्यां वाचि इति वचनान् -- भगवती १३-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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