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पुद्गल परिणामों के सम्बन्ध में
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" अतः बोलने से पूर्व की भाषा भाषा है, बोले जाने के समय की भाषा अभाषा है और बोले जाने के पश्चात् की भाषा भाषा है ।
"जिस प्रकार पूर्व की भाषा भाषा है, बोली जाती भाषा अभाषा है, और बोली गयी भाषा भाषा है, तो क्या बोलते पुरुष की भाषा है या अनबोलते पुरुष की भाषा है । इसका उत्तर अन्यतीर्थिक देते हैं कि अनबोलते की भाषा भाषा है पर बोलते पुरुष की भाषा भाषा नहीं है ।
" जो पूर्व की क्रिया है, वह दुःखहेतु है । जो क्रिया की जा रही है, वह दुःख हेतु नहीं है । की गयी क्रिया अकारण से दुःख हेतु है, कारण से यह दुःख हेतु नहीं है ।
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"अकृत्य दुःख है, अस्पृश्य दुःख है और अक्रियमाणकृत दुःख है । उनको न करके प्राण का, भूत का, जीव का और सत्व वेदना का वेद है । अन्यतीर्थिकों का इस प्रकार का मत है । "
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प्रश्नों को सुनकर भगवान् बोले - " हे गौतम! अन्यतीर्थिकों की बात ठीक नहीं है । मैं कहता हूँ 'चले माणे चलिए जाव निजरिज्जमाणे निज्जिन्ने' जो चलता है वह चला हुआ है यावत् जो निर्जरित होता है, वह निर्जरित है ।
"दो परमाणु- पुद्गल एक-एक परस्पर चिमट जाते हैं । इसका कारण यह है कि दोनों में स्निग्धता होती है। उनका दो भाग हो सकता है । यदि उसका दो भाग किया जाये तो एक ओर एक परमाणु- पुद्गल और दूसरी ओर एक परमाणु- पुद्गल आयेगा |
"तीन परमाणु- पुद्गल एक-एक परस्पर चिमट जाते हैं । इसका कारण है कि उनमें स्निग्धता होती है । उन तीन पुद्गल के दो या तीन भाग हो सकते हैं । यदि उनका दो भाग किया जाये तो एक ओर एक परमाणुपुद्गल होगा और दूसरी ओर दो प्रदेश वाला एक स्कंध होगा । और, यदि उसका तीन भाग किया जाये तो एक-एक परमाणु पुद्गल पृथक-पृथक हो
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