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३८-वाँ वर्षावास पुद्गल-परिणामों के सम्बन्ध में
वर्षावास के पश्चात् भगवान् गुणशिलक चैत्य में ही ठहरे थे कि, एक दिन गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा- "हे भगवन् ! अन्यतीर्थिक कहते हैं कि, ('एवं खलु चलमाणे अचलिए' यावत् 'निजरिजमाणे अणिजिने' ) जो चलता है, वह चला हुआ नहीं कहलाता और जो निर्जराता हो वह निर्जरित नहीं कहलाता है।
"दो परमाणु-पुद्गल परस्पर चिमटते नहीं; क्योंकि उनमें स्निग्धता का अभाव होता है।
"तीन परमाणु-पुद्गल परस्पर एक-दूसरे से चिमटे हैं क्योंकि उनमें स्निग्धता है । यदि उन तीन परमाणु-पुद्गलों का भाग करना हो तो उसका दो या तीन भाग हो सकता है। यदि उनका दो भाग किया जाये तो एक ओर डेढ़ और दूसरी ओर डेढ़ परमाणु होंगे और यदि तीन भाग किया जाये तो हर भाग में एक-एक परमाणु होगा । इसी प्रकार ४ परमाणु पुद्गल के सम्बन्ध में समझ लेना चाहिए।
“पाँच परमाणु-पुद्गल एक दूसरे से चिमटते हैं और दुःख का रूप धारण करते हैं । वह दुःख शाश्वत है और सदा पूर्णरूप से उपचय प्राप्त करता है तथा अपचय प्राप्त करता है। ___ "बोलने के समय से पूर्व जो भाषा का पुद्गल है वह भाषा है । बोलने के समय की जो भाषा है, वह अभाषा है। बोलने के समय के पश्चात् जो (भाषा) बोली जा चुकी है, वह भाषा है ।
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