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कालोदायी का शंका-समाधान
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कालोदायी — “हे भगवन् ! ऐसा आप किस प्रकार कह रहे हैं ?" भगवान् -- "हे कालोदायी ! जो पुरुष अग्नि प्रदीप्त करता है, वह पुरुष बहुत से पृथिवीकाय का समारंभ करता है थोड़ा अग्निकाय का समारंभ करता है, बहुत से वायुकाय का समारंभ करता है, बहुत से वनस्पति काय का समारंभ करता है और बहुत से त्रस्काय का समारंभ करता है । और, जो आग को बुझाता है, वह थोड़े पृथ्वीकाय यावत् थोड़ा सकाय का समारंभ करता है । इस कारण मैं कहता हूँ कि आग बुझाने वाला अल्पवेदना वाला होता है ।
कालोदायी — “हे भगवान् ! क्या उचित पुल अवभास करता है, उद्योत करता है, तपता है और प्रकाश करता है ?"
भगवान् - "हे कालोदायी ! हाँ इस प्रकार है
"
कालोदायी – “हे भगवन् ! अचित्त होकर भी पुद्गल कैसे अवभास करता है यावत् प्रकाश करता है ?"
भगवान् — “हे कालोदायी ! क्रुद्ध हुए साधु की तेजोलेश्या निकल कर - दूर पड़ती है । जहाँ-जहाँ वह पड़ती है, वहाँ वहाँ वह अचित्त पुद्गल अवभास करे यावत् प्रकाश करे । इस प्रकार यह अचित्त पुद्गल अवभास करता है यावत् प्रकाश करता है ।"
कालोदायी ने भगवान् का विवेचन स्वीकार कर लिया । बहुत से चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम उपवास करते हुए अपनी आत्मा को वासित करते हुए अंत में कालोदायी कालासबेसियपुत्र की तरह सर्व दुःख रहित हुआ ।
इसी वर्ष प्रभास गणधर ने गुणशिलक चैत्र में एक मास का अनशन करके निर्वाण प्राप्त किया ।
यह वर्षावास भगवान् ने राजगृह में बिताया ।
१ - भगवतीसूत्र सटीक शतक ७, उ० १० सूत्र
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