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तीर्थङ्कर महावीर तो वह भोजन प्रारम्भ में अच्छा लगता है पर उसके बाद उसका परिणाम' बुरा होता है। इसी प्रकार हे कालोदायी ! जीवों का पापकर्म अशुभफल संयुक्त होता है !"
__ कालोदायी- "हे भगवन् ! जीवों का शुभकर्म क्या कल्याणफलविपाक संयुक्त होता है ।”
भगवान्-"हाँ !"
कालोदायी---''जीवों के शुभकर्म कल्याणफलविपाक किस प्रकार होते हैं ?
भगवान् --"कालोदायी । जैसे कोई पुरुष सुन्दर थाली में राँधे हुए अठारह प्रकार के व्यंजन औषधि मिश्रित करे तो प्रारम्भ में वह भोजन अच्छा नहीं लगता पर उसका फल अच्छा होता है। उसी प्रकार शुभकर्म कल्याणफलविपाक युक्त होते हैं ।
"हे कालोदायी! प्राणातिपातविरमण यावत् परिग्रहविरमण क्रोध यावत् मिथ्यादर्शनशल्य का त्याग प्रारम्भ में अच्छा नहीं लगता पर उसका फल शुभ होता है। ____ कालोदायी-"एक समान दो पुरुष समान भांड-पात्रादि उपकरण वाले हों, तो दोनों परस्पर साथ अग्निकाय का समारंभ (हिंसा) करें, उनमें एक पुरुष अग्निकाय प्रकट करे और दूसरा उसे बुझाये तो इन दोनों पुरुषों में कौन महाकर्मवाला, महाक्रियावाला, महाआश्रयवाला और महावेदना वाला होगा और कौन अल्पकमवाला यावत् अल्पवेदना वाला होगा?"
भगवान्-"कालोदायी ! इन दोनों व्यक्तियों में आग का जलाने वाला महाकर्मवाला यावत् महावेदना वाला है और जो आग को बुझाता है वह अल्पकर्मवाला यावत् अल्पवेदनावाला है।
१ भगवती सूत्र की टीका में अभयदेव मूरि ने १८ प्रकार के व्यंजन गिनाये हैं-पत्र ५६७
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