________________
कालोदायी की शंका का समाधान २७१ १-प्रयोगगति, २ ततगति, ३ बंधनछेदनगति, ४ उपपातगति, ५ विहायोगगति
यहाँ से प्रारम्भ करके सम्पूर्ण प्रयोगपद भगवान् ने इसी अवसर पर कहा ।
कालोदायी की शंका का समाधान उसी समय एक दिन जब भगवान् का धर्मोपदेश समाप्त हो गया और परिपदा वापस चली गयी तो कालोदायी अनगार ने भगवान् के निकट आकर उन्हें वंदन नमस्कार किया और पूछा- "हे भगवन् ! जीवों ने पापकर्म पापविपाक ( अशुभं फल ) सहित होता है ?''
भगवान्-"हाँ !”
कालोदायी-- "हे भगवन् ! पापकर्म अशुभ फल विपाक किस प्रकार होता है ?"
भगवान्- "हे कालोदायी जैसे कोई पुरुष सुन्दर थाली में राँधे हुए परिपक अठारह प्रकार के व्यंजनों से युक्त विष मिश्रित भोजन करे,
१-यहाँ भगवती सूत्र १०८ उ. ७ सूत्र ३३७ पत्र ६६७ में पाठ है-विहायोगती एतो आरम्भ पयोगपयं निरवसेसं भाणियव्व जाव सत्तं विहायगई। यह पूरा पाठ प्रज्ञापना सूत्र सटोक १६ प्रयोग पद सूत्र २०५, पत्र ३२५-२ से ३२७-२ में आता है । प्रज्ञापन में के प्रथम भेद प्रयोगगति १५ के भेद बताये गये हैं। उन १५ भेदों का उल्लेख समवायांगसूत्र सटीक, समवाय १५ पत्र २७-२ में भी पाता है। पूर्व प्रयोग का अर्थ है-"पूर्वबद्ध कर्म के छूट जाने के बाद भी उससे प्राप्त वेग।" 'गतिप्रपात' की टीका करते हुए भगवती की टीका में अभयदेव सरि ने लिखा है-"गतिः प्रोद्यतेप्रमप्यते यत्र तद् गतिप्रवादं-गतेर्वा प्रवृत्तेः क्रियायाः प्रपातः प्रपतनं सम्भवः प्रयोगादिष्वर्थेषु वर्तनं गतिप्रपात स्तत्प्रतिपादकमध्ययन गतिप्रपातं तत् प्रज्ञापितवन्तो प्रस्तावादिति।
२-भगवती सूत्र सटीक शतक ८ उद्दश्य ७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org