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________________ तीर्थकर महावीर के आश्रयी और सत्य के आश्रयी एक स्थल से दूसरे स्थल पर जाते हैं । एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जाते हैं । एक स्थल से दूसरे स्थल पर जाते हुए हम पृथ्वी के जीवों को दबाते अथवा हनन नहीं करते हैं। इस प्रकार हम त्रिविध-त्रिविध संयत् यावत् एकान्त पंडित हैं। पर, आप लोग त्रिविधत्रिविध असंयत् यावत् एकान्त बाल हैं।” ऐसा कहे जाने का कारण पूछने पर स्थविर भगवन्तों ने कहा--"तुम लोग पृथ्वी के जीवों को दबाते ही यावत् मारते हो। इस प्रकार भ्रमण करने से तुम लोग त्रिविध-त्रिविध यावत् एकान्त बाल हो । अन्यतीर्थिकों ने कहा-"तुम्हारे मत से गम्यमान अगत, व्यतिक्रम्य माण अव्यतिक्रान्त और राजगृह को संप्राप्त होने का इच्छुक असंप्राप्त है । ___ इस पर स्थविर भगवन्तों ने कहा--"हमारे मत से गभ्यभान अगत, व्यतिक्रम्यमाण अव्यतिक्रान्त और राजगृह को संप्राप्त करने की इच्छा वाला, असंप्राप्त नहीं कहे जाते । बल्कि, हमारे मत के अनुसार जो गभ्यमाण वह गत ( गएमाणे गए), व्यतिक्रम्यमाण वह व्यतिक्रान्त ( वीतिकमिज्जमाने वीविक्कं ते ) और राजगृह प्राप्त करने की इच्छावाला संप्राप्त कहलाता है । तुम्हारे मत के अनुसार गम्यमान वह अगत (गम्ममाणे अगए), व्यतिक्रम्यमाण वह अव्यतिक्रान्त (वीतिक मजमाणे अवीतिकंते) और राजगृह पहुँचने की इच्छावाले को असंप्राप्त कहते हैं।" इस प्रकार अन्यतीर्थिकों को निरुत्तर करके उन लोगों ने गतिप्रपानामक अध्ययन रचा । गतिप्रपात कितने प्रकार का गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा- "हे भगवन् ! गतिप्रपात कितने प्रकार का है ?' इस पर भगवान् ने उत्तर दिया-- "गतिप्रपात पाँच प्रकार का कहा गया है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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