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________________ ३७-वाँ वर्षावास अन्यतीर्थिकों का शंका समाधान वर्षावास समाप्त करके भगवान् विहार करते हुए राजगृह पहुँचे और गुणशिल ६ चैत्य में ठहरे। उस गुणशिलक चैत्य से थोड़ी ही दूर पर अन्यतीर्थिक रहते थे। भगवान् महावीर के समवसरण के बाद जब परिषदा विसर्जित हुई तो उन अन्यतीथिकों ने स्थविर भगवंतों से कहा- "हे आर्यो ! तुम त्रिविधत्रिविध से असंयत, अविरत और अप्रतिहत पाप कर्म वाले हो ।” तब स्थविर भगवंतों ने पूछा--"आर्यो ? आप ऐसा क्यों कहते हैं ?” । अन्य तीर्थिकों ने कहा-"तुम लोग अदत्त ग्रहण करते हो, अदत्त भोजन करते हो, अदत्त वस्तु का स्वाद लेते हो । अतः अदत्त ग्रहण करने से, अदत्त का भोजन करने से, अदत्त की अनुमति देने से तुमलोग त्रिविधत्रिविध असं यत और अविरत यावत् एकान्त बाल समान हो।” ___तब स्थविर भगवंतों ने पूछा-"आर्यो किस कारण से तुम कहते हो कि हम आदत्त लेते खाते हैं अथवा उसका स्वाद लेते हैं। ____ अन्यतीर्थिकों ने कहा-"आर्यो तुम्हारे धर्म में है--जो वस्तु दी जाती हो वह दी हुई नहीं है (दिज्जमाणे अदिन्ने), ग्रहण करायी जाती हो वह ग्रहण करायी गयी नहीं है (पडिग्गहेज्ज माणे अपडिग्गहिए ), पात्र भगवतीसूत्र सटीक शतक ७, उद्देशा २, सूत्र १ में १-जैसा कि वर्णित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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