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तीर्थङ्कर महावीर चिलात् भी जिनदेव के साथ भगवान् का दर्शन करने गया और उसने रत्नों के सम्बन्ध में भगवान् से प्रश्न पूछे।
भगवान् ने कहा-"रत्न दो प्रकार के हैं-१ भावरत्न और द्रव्यरत्न ।
फिर चिलात् ने भगवान् से भावरत्न माँगें । और, भगवान् ने उसे रजोहरण आदि दिखलाये ।
इस प्रकार चिलात् प्रव्रजित हो गया।' अपना वह वर्षावास भगवान् वैशाली में बिताया।
१-आवश्यक चूर्णि उत्तरार्द्ध पत्र २०३-२०४ श्रावश्यक हारिभद्रीय ७१५-२-७१६.१. आवश्यक नियुक्ति दीपिका-द्वितीय भाग गा० १३०५ पत्र ११६-२
कोटिवर्ष लाढ़ देश की राजधानी थी। इसके सम्बन्ध में हम सविस्तार तीर्थङ्कर महावीर भाग १ पष्ठ २०२, २११.२१३ पर लिख चुके हैं। यह आर्यदेश में था। इसका उल्लेख जैन-शास्त्रों में जहाँ-जहाँ पाता है, उसे भी हम तीर्थकर महावीर भाग १ पृष्ठ ४२-४६ लिख चुके हैं। श्रमण भगवान् में कल्याण विनयजी ने लिखा है कि महावीर के काल में कोटिवर्ष में किरात जाति का राज्य था । किरात लोग किरात देश में रहते थे ( देखिये ज्ञाताधर्म कथा सटीक भाग १, अ० १, पत्र ४१-१-४५-१ यह किरात देश लाढ़ देश से भिन्न था, ऐसा उल्लेख जैन-शास्त्रों में मिलता है। जैन-शास्त्रों में जहाँ कोटिवर्ष को आर्यदेशों में गिना है, वहाँ किरात अनार्य देश बताया गया है ( प्रवचन सारोद्धार सटीक उत्तरार्द्ध गाथा १५८६ पत्र ४४५.२ प्रश्न व्याकरण सटीक पत्र १३-२ सूत्रकृतांग सटीक पत्र १२२-१)
किरातों का उल्लेख महाभारत में भी आता है (XI, २०७, ४७ ) इनका उल्लेख यवन, काम्बोज, गांधार और बर्बरों के साथ किया गया है। वहाँ यह पाठ आता है :
पुण्ड्रा भर्गा किताश्च सुदृष्टा यमुनास्तथा । शका निषादा निषधाम्तथैवानर्तनै कृताः ॥
(भीष्मपर्व अ० १, श्लोक ४१, ५४ १५) श्रीमद्भागवत (i, ५, १८ ) में भी इसे आर्य क्षेत्र के बाहर बताया गया है। किरात हूणान्ध्रपुलिन्दपुल्कासा आभीरकका यवनाःखसादयं (भाग १, पृष्ठ १६१)
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