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३६-वाँ वर्षावास चिलात साधु हुआ
उस समय कोशलभूमि में साकेत-नामक नगर था । वहाँ शत्रुञ्जयनाम का राजा राज्य करता था। उस नगर में जिनदेव-नाम का एक श्रावक रहता था। दिग्यात्रा करता हुआ वह कोटिवर्ष-नामक नगर में जा पहुँचता। उन दिनों वहाँ चिलात् नाम का राजा राज्य करता था । जिनदेव ने चिलात् को विचित्र मणि-रत्न तथा वस्त्र भेंट किये । उन बहुमूल्य वस्तुओं को देवकर चिलात् ने पूछा-"ऐसे रत्न कहाँ उत्पन्न होते हैं ?"
जिनदेव ने कहा-"ये हमारे देश में उत्पन्न होते हैं ?"
चिलात् ने कहा--"मुझे उस देश के राजा का भय है, अथवा मैं चलकर उस स्थान पर स्वयं रत्नों को देखता।" ।
जिनदेव ने अपने राजा की अनुमति मँगा दी। अतः चिलात साकेत आया।
इसी अवसर पर भगवान महावीर ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साकेत आये। भगवान् के आगमन का समाचार सुनकर सभी दर्शन करने चल पड़े।
शमुंजय-राजा भी बड़ी धूमधाम से सपरिवार भगवान् की वंदना करने गया ।
भीड़भाड़ देवर चिलात् ने पूछा-"जिनदेव, ये लोग कहाँ जा रहे हैं।"
जिनदेव-"रत्नों का व्यापारी आया है।"
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