SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काल चार प्रकार के २६३ शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था तथा आठ श्रेष्ट कन्याओं के साथ उसके विवाह का विस्तृत विरण भगवती सूत्र में आता है ।) " उस समय विमलनाथ तीर्थंकर के प्रपौत्र - प्रशिष्य धर्मघोष नामक अनगार थे । वे जाति सम्पन्न थे । यह सब वर्णन केशीकुमार के समान जान लेना चाहिए धर्मघोष पूजा शिष्यों के साथ ग्रामानुग्राम विहार करते हुए हस्तिनापुर नामक नगर में आये और सहस्राम्रवन में ठहरे | "धर्मघोष-मुनि के आगमन का समाचार सुनकर लोग उनका दर्शन करने गये । " "लोगों को जाते देखकर जमालि के समान महन्चल ने बुलाकर भीड़ का कारण पूछा और धर्मोप मुनि के आगमन का समाचार सुनकर महब्बल भी धर्मधोप के निकट गया । धर्मोपदेश की समाप्ति के बाद महब्बल ने दीक्षा लेने का विचार प्रकट किया । "घर आकर जब उसने अपने पिता से अनुमति माँगी तो उसके पिता ने पहले तो मना किया पर बाद में उसका एक दिन के लिए राज्याभिषेक किया । उसके बाद महब्बल ने दीक्षा ले ली । "महन्बल ने धर्मघोष के निकट १४ पूर्व पढ़े । चतुर्थ भक्त यावत् विचित्र तपकर्म किये । १२ वर्षो तक श्रमण-पर्याय पालकर, मासिक संलेखना करके साठ भक्तों का त्याग करके आलोचना - प्रतिक्रमण करके समाधि पूर्व मृत्यु को प्राप्त कर ब्रह्मलोक कल्प में देवरूप में उत्पन्न हुआ । दस सागरोपम वहाँ बिताकर तुम यहाँ वाणिज्यग्राम में श्रेष्ठि कुल में उत्पन्न हुए । " यह सब सुनकर सुदर्शन ने दीक्षा ले ली और भगवान् के निकट रहकर १२ वर्षों तक श्रमण पर्याय पाला । १ - राज्यस्त्रीय, प ११८-१ २ - भगवतीसूत्र सटीक शतक ११, उद्देशा ११ पत्र ६७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy