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तीर्थङ्कर महावीर
सुदर्शन - "भगवान् ! मरणकाल क्या है ?"
भगवान् - " शरीर से जीव का अथवा जीव से शरीर का वियोग हो तो उसे मरणकाल कहते हैं । "
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प्रकार का है ?"
सुदर्शन - "हे भगवान् ! अद्धाकाल कितने भगवान् — “अद्धाकाल अनेक प्रकार का कहा गया है । समयरूप, आवलिकारूप, यावत् अवसर्पिणी रूप | ” ( इन सबका सविस्तार वर्णन हम तीर्थंकर महावीर भाग १ पृष्ठ ६ - २० तक कर चुके हैं । )
सुदर्शन - "हे भगवन् ! पत्योपम अथवा सागरोपम की क्या आवश्यकता है ?"
भगवान् — हे सुदर्शन ! नैरयिक, तिर्यचयोनिक, मनुष्य तथा देवों के आयुष्य के माप के लिए इस पत्योपम अथवा सागरोपम की आवश्यकता पड़ती है।"
सुदर्शन - "हे भगवन् ! नैरभिक की स्थिति कितने काल तक की है ?" भगवान् ने इस प्रश्न का विस्तार से उत्तर दिया । '
उसके बाद भगवान् ने सुदर्शन श्रेष्टि के पूर्ववत का वृतांत कहना प्रारम्भ किया
" हे सुदर्शन ! हस्तिनापुर - नामक नगर में बल - नामका एक राजा था । उसकी पत्नी का नाम प्रभावती था। एक बार रात में सोते हुए उसने महास्त्रान देखा कि, एक सिंह आकाश से उत्तर कर मुँह पर प्रवेश कर रहा है । उसके बाद वह जगी और उसने राजा से अपना स्वप्न बताया राजा ने उसके स्वप्न की बड़ी प्रशंसा की फिर राजा ने स्वप्नपाठकों को बुलाया । उन लोगों ने स्वप्न का फल बताया । उचित समय पर पुत्र का जन्म हुआ उसका नाम यह महब्बलनाम पड़ा ( उसके पालन-पोषण
१- प्रज्ञा० पद ४ प० १६८-१७८
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