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________________ २६० तीर्थंकर महावीर सुदर्शन-- "हे भगवान् प्रमाणकाल कितने प्रकार का है ?" भगवान्- "हे सुदर्शन ! प्रमाणकाल दो प्रकार का है-दिवसप्रमाण काल और रात्रिप्रमाणकाल । चार पौरुषी का दिन होता है और चार पौरुषी की रात्रि होती है। और, अधिक से अधिक साढ़े चार मुहूर्त की पौरुषी दिन की और ऐसी ही रात्रि की होती है । और, कम से कम तीन मुहूर्त की पौरुषी दिन और रात्रि की होती है। सुदर्शन-"जब अधिक-से-अधिक ४॥ मुहूर्त की पौरुषी दिन अथवा रात की होती है, तो मुहूर्त का कितना भाग घटते-घटते दिन अथवा रात्रि की ३ मुहूर्त की पौरुषी होती है ? और, जब दिन अथवा रात्रि की ३ मुहूर्त की पौरुषी होती है तो मुहूर्त का कितना भाग बढ़ता-बढ़ता ४|| मुहूर्त की पौरुषी दिन अथवा रात्रि की होती है । भगवान्–“हे सुदर्शन ! जब दिन अथवा रात्रि में साढ़े चार मुहूर्त की उत्कृष्ट पौरुषी होती है, तब मुहूर्त का १२२-वाँ भाग घटते-घटते दिन अथवा रात्रि की तीन मुहूर्त की पौरुषी होती है। और, जब ३ मुहूर्त की पौरुषी होती है तो उसी क्रम से बढ़ते-बढ़ते ४|| मुहूर्त की पौरुषी होती है । सुदर्शन- "हे भगवन् ! किस दिवस अथवा रात्रि में साढ़े चार मुहू ( पष्ठ २५६ की पादटिप्पणि का शेषांष ) काल: प्रमाणं वा परिच्छेदनं वर्षादेस्तत्प्रधानस्तदथों वा काल: प्रमाणकाल:--श्रद्धाकालस्य विशेषो दिवसादि लक्षणः पत्र ६७८ ३- अहाउनिन्वत्तिकाले-त्ति यथा-येन प्रकारेणा युषो निवृत्तिः बन्धन तथा यः काल:-अवस्थितिरसौ यथानिवृत्तिकालो-नारकाद्यायुष्कलक्षणः, अयं चाद्धाकाल एवायुः कर्मानुभव विशिष्टः सर्वेषामेव संसारि जीवानां स्यात् ४-'मरणकाले' त्ति मरणेन विशिष्टः काल: मरणकाल:-अद्धाकाल एव, मरणमेव वा कालो मरणस्य काल पर्याय त्वान्मरण काल: ५-'अद्धाकाले' त्ति अद्धा समयादयो विशेषास्तद्र पः कालोऽद्धाकालः चन्द्र सूर्यादि क्रिया विशिष्टोऽर्द्धतृतीयद्वीप समुद्रान्तवती समयादिः पत्र ६७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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