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३५-वाँ वर्षावास काल. चार प्रकार के
वर्षा ऋतु पूरी होने पर भगवान् फिर विदेह की ओर चले और चाणिज्य ग्राम में पहुँचे । वाणिज्य ग्राम के निकट द्विपलाश-चैत्य था । उसमें पृथिवीशिलापट्टक था। उस वाणिज्यग्राम-नगर में सुदर्शन-नामक एक श्चेष्ठि रहता था। सुदर्शन बड़ा धनी व्यक्ति था। और, जीवतत्व का जानकार श्रमणोपासक था।
भगवान् महावीर के आगमन का समाचार सुनकर जन समुदाय भगवान् का दर्शन करने चला। भगवान् के आगमन की बात सुनकर सुदर्शन श्रेष्ठि स्नान आदि करके और अलंकारों से विभूषित होकर नगर के मध्य में होता हुआ पाँव-पाँव द्विपलास की ओर चला । द्विपलास-चैत्य के निकट पहुँच कर उसने पाँचो अभिगमों का त्याग किया और भगवान् के निकट जाकर ऋषभदत्त के समान' भगवान् की पर्युपासना की । भगवान् का धर्मोपदेश समाप्त हो जाने पर सुदर्शन सेठ ने भगवान् से पूछा"हे भगवान् काल कितने प्रकार का है ?"
भगवान् – “काल चार प्रकार का है। उनके नाम है.-१प्रमाणकाल' यथायुर्निवृत्ति काल , ३ मरणकाल', ४ अद्धा काल' ।
१ भगवती सूत्र श०६ उ०३३
२-प्रमाण काल को टीका अभयदेव सूरि ने इस प्रकार की है-'प्रमाणकाल' त्ति' प्रमीयते-परिच्छिद्यते येन वर्ष रातादि तत् प्रमाणं स चासौ कालश्चेति प्रमाण
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