________________
२५८
तीर्थंकर महावीर
दिये बिना जाने लगा । इस पर गौतम स्वामी ने फिर उससे कहा - "हे आयुष्मान् ! किसी भी शिष्ट श्रमण या ब्राह्मण के पास से धर्मयुक्त एक भी वाक्य सुनने या सीखने को मिलने पर अपने को अपनी बुद्धि से विचार करने पर यदि ऐसा लगे कि आज मुझे जो उत्तम योग-क्षेम के स्थान पर पहुँचाया है, तो उस मनुष्य को उस श्रमण-ब्राह्मण का आदर करना चाहिए, उनका सम्मान करना चाहिए, तथा कल्याणकारी मंगलमय देवता के समान उसकी उपासना करनी चाहिए ।
गौतम स्वामी का उपदेश सुनकर पेढालपुत्र उदक बोला- - "इसके पूर्व मैंने ऐसे वचन न सुने थे और न जाने थे । इन शब्दों को सुनकर अब मुझे विश्वास हो गया । मैं स्वीकार करता हूँ कि आपका कथन यथार्थ है ।"
तब गौतम स्वामी ने कहा - "हे आर्य ! इन शब्दों पर श्रद्धा, विश्वास और रुचि कर; क्योंकि जो मैंने कहा है वह यथार्थ है ।"
इस पर पेढालपुत्र ने कहा कि चतुर्यायधर्म के स्थान पर मैं पंचमहाव्रत स्वीकार करना चाहता हूँ । गौतम स्वामी ने उस उदक से कहा - "जिसमें सुख हो, वह करो ।"
तत्र पेढालपुत्र उदक ने भगवान् के पास जाकर उनकी वंदना की और परिक्रमा किया तथा उनका पंचमहाव्रत स्वीकार करके प्रत्रजित हो गया । "
इसी वर्ष जालि, मयालि, आदि अनेक अनगारों ने विपुलाचल पर अनशन करके देह छोड़ा |
अपना यह वर्षावास भगवान् ने नालंदा में बिताया ।
१ - सूत्रकृतांग ( सटीक बाबूवाला) श्रुतस्कंध २, नालंदीयाव्ययन ७, पृष्ठ
६५४-१०२०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org