________________
( २६ ) पणयालोसं आगम .....
(श्लोक २९७, पृष्ट १८) धनपाल राजा भोज का समकालीन था। इसका समय विक्रम की ११-वीं शताब्दि है। ४५ आगमों के नाम इस प्रकार हैं :
११ अंग दुवालस गणिपिडगे प० तं०-१ अायार, २ सूयगडे, ३ ठाणे, ४ समवाए, ५ विवाहपन्नत्ती, ६ णायाधम्मकहानो, ७ उवासगदसानो, ८ अंतगडदसायो, ६ अणुत्तरोववाइयदसायो १० पण्हवागरणाई, ११ विवागसुए, १२ दिट्टिवाए
-~-~~-समवायांगपत्र सटीक, समवाय १३६, पत्र ९९-२ दृष्टिवाद के अन्तर्गत पूर्व थे । उन पूवों के नाम नंदीसूत्र सटीक पत्र २३६-२ में इस प्रकार दिये हैं :
से किं तं० पुव्वगए ? चउद्दस विहे पगणत्ते. तंजहा उपाय पुव्व १, अग्गाणीयं २, वीरिग्रं ३, अत्थिनथिप्पवायं ४, नाणप्पवायं ५, सच्चप्पवायं ६, प्रायःपवायं ७, कम्मापवायं ८, पञ्चक्खाणप्पवायं ६, विज्जापवायं १०, आवंझ ११, पाणाऊ १२, किरियाविसालं १३, लोकबिन्दुसार १४
अंतिम चतुर्दश पूर्वी स्थूलभद्र हए। फिर अंतिम ४ पूवों का उच्छेद हो गया। उनके बाद बज्रस्वामी तक १० पूर्वी हुए । देवद्धि गणि क्षमाश्रमण ने श्री पार्श्वनाथ संतानीय देवगुप से १ पूर्व अर्थ सहित और १ पूर्व मूल-मूल पढ़ा था। ( देखिए आत्मप्रबोध, पत्र ३३-१ ) और अंतिम पूर्वधारी सत्यमित्र हुए । वे एक पूर्व धारण करनेवाले थे। उनके स्वर्गवास के पश्चात्
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org