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यहाँ बता दूं कि, प्रकीर्णकों की संख्या बताते हुए नंदीसूत्र टीक ( पत्र २०३-१ ) में पाठ आता है चोद्दसपइन्नगसहस्साणि भगवो वद्धमाण सामिस्स -वर्द्धमान स्वामी के १४ हजार प्रकीर्णक हैं।
जैन-आगमों की संख्या के सम्बन्ध में दूसरी मान्यता ४५ की है । हीरालाल रसिकलाल कापड़िया ने 'द' कैनानिकल लिटरेचर आव द' जैनाज' ( पृष्ठ ५८ ) में लिखा है कि, कम से कम 'विचारसार के निर्माण तक जैन-आगमों की संख्या ४५ हो चुकी थी। समाचारी-शतक ( समयसुन्दर-विरचित ) में ४५ आगमों की गणना निम्नलिखित रूप में करायी गयी हैइक्कारस अंगाई ११, बारसउवंगाई २३, दस पइराणा २३ य । छ च्छे ३६, मूलचउरो ४३ नंदी ४४ अणुयोगदाराई ४५॥
-पत्र ७६-१ उसी ग्रंथ में समयसुन्दर ने जिनप्रभसूरि-रचित 'सिद्धान्तस्तव' को उद्धृत करके ४५ आगमों के नाम भी गिनाये हैं। पर, कापड़िया का यह कथन कि विचारसार तक ४५ की संख्या . निश्चित हो चुकी थी, सर्वथा भ्रामक है। समयसुन्दर गणिविरचित 'श्रीगाथासहस्री' में धनपाल-कृत श्रावक-विधि का उद्धरण है। उसमें पाठ आता है
१-विचारसार के समय के सम्बन्ध में जैन-ग्रन्थावलि में लिखा है
प्रद्युम्नसूरि ते सं० १२६४ मां थयेला धर्मघोषसूरि ना शिष्य देव प्रभसूरि ना शिष्य हता। एटले तेत्रो सं० १३२५ ना अरसा मां थया गणी शकाय । ( पृष्ठ १२८)
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