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( २४ ) दूसरी गणत्री
१ अजीवकल्प, २ गच्छाचार, ३ मरणसमाधि, ४ सिद्धप्राभृत, ५ तीर्थोद्गार, ६ आराधनापताका, ७ द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, ८ ज्योतिष्करंडक, ९ अंगविद्या, १० तिथिप्रकीर्णक ।
तीसरी गणत्री
१ पिंडनियुक्ति, २ सारावली, ३ पर्यंताराधना, ४ जीवविभक्ति, ५ कवच, ६ योनिप्राभृत, ७ अंगचूलिया, ८ वंगचूलिया, ९ वृद्धचतुःशरण, १० जंबूपयन्ना।
१२ नियुक्ति १ आवश्यक, २ दशवैकालिक, ३ उत्तराध्ययन, ४ आचारांग, ५ सूत्रकृत्, ६ वृहत्कल्प, ७ व्यवहार, ८ दशाश्रुत, ९ कल्पसूत्र, १० पिंडनियुक्ति, ११ ओघनियुक्ति, १२ संसक्तनियुक्ति, (सूर्यप्रज्ञाप्तिनियुक्ति और ऋषिभाषित की नियुक्तियाँ मिलती नहीं)
ये सब मिलाकर ८३ हुए । विशेषावश्यक मिलाने से उनकी संख्या ८४ हो जाती है।
नंदीसूत्र में ३७ कालिक और २९ उत्कालिक सूत्रों के नाम मिलते हैं । १ आवश्यक और १२ अंगों का भी उल्लेख नंदी में है। इस प्रकार उनकी संख्या ७९ होती है । ठाणांगसूत्र (सूत्र ७५५) में १० दशाओं का उल्लेख है, जिनमें ५ तो उपर्युक्त गणना में आ जाते हैं, पर १ आचारदशा, २ बंधदशा, ३ द्विगृद्धिदशा, ' ४ दीर्घदशा और ५ संक्षेपितदशा ये ५ नये हैं। इनको जोड़ देने से संख्या ८४ हो जाती है।
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