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उदक को उत्तर
२५३ एक बार गौतम स्वामी के पास आकर पेढालपुत्र उदक ने कहा"हे आयुष्मान गौतम ! निश्चय ही कुमारपुत्र' नामके श्रमण-निग्रंथ हैं। वे तुम्हारे प्रवचन को प्ररूपित करने वाले हैं। व्रत-नियम लेने के लिए आये हुए गृहपति श्रमणोपासकों को वह इस प्रकार प्रत्याख्यान कराते हैं-"त्रस प्राणियों को दंड-अर्थात् विनाश-उनका त्याग करे।” इस प्रकार वे प्राणातिपात से विरति कराते हैं। राजादिक के अभियोग के कारण जिन प्राणियों का उपघात होता हो, उनको छोड़कर
( पृष्ठ २५२ का शेषांक पाद टीप्पणी )
३-यहाँ प्राकृत में 'उदगमाला' का प्रयोग हुआ है। जैकोबी ने 'सेक्रेड बुक्ल श्राव द ईस्ट' वाल्यूम ४५ सूत्रकृतांग (पष्ठ ४२० ) में तथा गोपालदास जीवाभाई पटेल ने 'महावीर तो संयम धर्म (सूत्रकृतांग का छायानुवाद ८२, गुजराती पृष्ठ २३२ तथा हिन्दी पृष्ठ १२७) में उदकशाला का अर्थ स्नानगृह किया हैं। अभिधान चिंतामणि सटीक भूमिकांड श्लोक ६७ पृष्ठ ३६६ में 'प्रपा पानीयशाला स्यात्' लिखा है। अर्थात् प्रपा और पानीयशाला समानार्थी है। ऐसा ही उल्लेख अमरकोष सटीक ( व्यंकटेश्वर प्रेस ) पृष्ठ ६५ श्लोक ७ में भी है। रतनचन्द ने अर्द्धमागधी कोष ( भाग २, पृष्ठ २१८ ) पर उसका अर्थ प्याऊ लिखा है। यही अर्थ ठीक है।
४-गोपालदास जीवाभाई पटेल ने प्राकृत शब्द 'हत्थिजामे' से अपने हिन्दी अनुवाद ( पष्ठ १२७) पर 'हस्तिकाम' कर दिया है । 'हस्तिजाम' से हस्तियाम शब्द बनेगा हस्तिकाम नहीं।
१-इस पर टीकाकार ने लिखा है-'निर्गथायुष्मदीय' तुम्हार निर्गथ ( सूत्रकृतांग बाबूवाला पृष्ठ ६६६) भगवान् महावीर के साधु
२-यहाँ मूल शब्द 'उवसंपन्नं' है। इसका अर्थ जैकोबी ने 'सेक्रेड बुक आष द ईस्ट' वाल्यूम ४५ सूत्रकृतांग पष्ठ ४२१ में 'जीलस' लिखा है । टीकाकार ने 'नियमयोत्थित' इसकी टीका की है और दीपिका में 'नियमप्रहणोद्यतं' लिखा है (सूत्रकृतांग बाबूवाला, पष्ठ ६६६,६६५)
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